भटकता पंछी !
मैं आसमाँ में भटकता पंछी हूँ…!
जो सांझ की समयसीमा में गंतव्य पर लौट ना सका हूँ ,
दिनभर उड़ता फिरता आज इन अंधेरो में भटक सा गया हूँ ,
ना जाने कैसे बहका मैं, आज घर का रास्ता भूल सा गया हूँ….!!
वो जलता सूरज ही मुझको भाता है,
जो सबके रंग उजालो में दिखाता है..!
ये तो बईमान सा घोर अंधेरा है ,
जिसमें केवल चाँद अकेले चमकता है !!
याद आती है उजियारी रौशनी की ,
जहां दिखता हर तथ्य सुनहरा है…!
इन अंधेरो ने तो भ्रमित किया ,
ना जाने कौन पेड़ में मेरा बसेरा है..!!
एक ओर शीतलता भरी मन्द मन्द बयार ,
दूसरी ओर ये चमकती तारो की तादात ,
जिसमे हम जैसों को सम्मोहित करता…
केंद्र में बैठा हुआ है वो चांद !!
पर मैं ना आऊंगा इस सम्मोहन में ,
मैं ना खोउंगा इस स्वप्न में ,
मुझे तो बस उड़ते जाना है …
कल फिर उजालो में अपना घर पाना है ।।