Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Dec 2022 · 2 min read

बोध कथा। अनुशासन

एक धार्मिक बोध कथा
जीवन में कई बार कठोर फैसले लेने पड़ते हैं। घर हो तो फैसले न हों तो घर नहीं चलता। संतान के आगे समर्पण कर दो तो घर नहीं चलता। संतान की न सुनो तो घर नहीं चलता। यही नियम सृष्टि का है। देवलोक में तो सारे देव हैं। कौन किसकी सुने। इसी बार पर एक बार बहस छिड़ गई कि हममें से कौन श्रेष्ठ है। ब्रह्मा जी बोले, मैं श्रेष्ठ हूं। मैंने ही सृष्टि रची। मुझसे बढ़कर कौन? यदि मैं नहीं होता तो न तुम होते और न सृष्टि, न वनस्पति, न जीव न जंतु। विष्णु जी हार मानने को तैयार नहीं थे। वह बोले, पैदा करने से क्या होता है। जन्म से बढ़कर पालन-पोषण महत्वपूर्ण होता है। पैदा कर दो लेकिन पेट भरने को दो रोटी भी न मिले तो जन्म देना बेकार है। सृष्टि नियमों से चलती है। अनुशासन से चलती है। अति हर चीज की बुरी होती है। मैं जगत् का पालनहार हूं। मैं सृष्टि को अनुशासन में रखता हूं। मैं न हूं तो सृष्टि चले ही नहीं। मेरी पत्नी हैं लक्ष्मी। धन की देवी। धन और अन्न सृष्टि का केंद्र हैं। हम दोनों इसके अधिष्ठाता हैं। मैं पालनहार हूं। इसलिए, मैं सर्वश्रेष्ठ हूं।
शंकर जी शांति से सुन रहे थे। वह बोले, ब्रह्मा जी भी ठीक। विष्णु जी आप भी ठीक। लेकिन यह तो बताओ, सृष्टि का अनुशासन किससे चलता है। जो आया है, वो जाएगा। अगर कोई जाये ही नहीं तो सृष्टि कैसे चलेगी? जन्म होते रहें लेकिन मृत्यु या मोक्ष न हो तो ? यह कार्य तो मैं करता हूं। इसलिए, मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूं। तीनों देवों में बहस चल रही थी। तभी एक प्रकाश प्रगट होता है। आकाशवाणी होती है…..कोई सर्वश्रेष्ठ नहीं। मैं सर्वश्रेष्ठ हूं। मैं ही प्रकाश हूं। मैं ही अंतरात्मा हूं। मेरे से ही जग उत्पन्न हुआ है। मुझमें ही समाया है। यह धरती यह आकाश, यह दिन ये रात। ये देव और देवी….मेरा ही अंश हैं। सृष्टि तो प्रकाश पुंज है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश नतमस्तक हो गए। फिर आकाशवाणी होती है…..जो मैं को मार देगा, वही सर्वश्रेष्ठ है।
निष्कर्ष-सार
1. घर हो या सृष्टि अनुशासन सर्वप्रथम है
2. अपने मैं को मारो, सदा बोलो…हम
3. संगठऩ में शक्ति है। टीम वर्क से ही विजय मिलती है
4. ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के धर्म और कार्य विभक्त हैं तो हमारे क्यों नहीं।
5. अपने अंदर के प्रकाश को प्रदीप्त करो। यही प्रकाश आपको सुख, शांति, समृद्धि, ज्ञान देगा
6. इसी बोधकथा का आध्यात्मिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और शारीरिक तत्व है…तीन चरणीय व्यवस्था।
तीन ही देव, तीन ही देवी, तीन ही लोक, तीन भागों में शरीर विभक्त है। तीन पूर्वजों का ही हम श्राद्ध करते हैं।
7. हमारी हर सामाजिक-राजीतिक व्यवस्था भी तीन चरणीय है।
8. इस कथा के भी तीन ही संदेश हैं….मैं को मारो, अनुशासन रखो, अंतस का प्रकाश देखो।
-सूर्यकांत द्विवेदी

Language: Hindi
253 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Suryakant Dwivedi
View all
You may also like:
*नींद आँखों में  ख़ास आती नहीं*
*नींद आँखों में ख़ास आती नहीं*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
😊नया नारा😊
😊नया नारा😊
*प्रणय प्रभात*
हरी दरस को प्यासे हैं नयन...
हरी दरस को प्यासे हैं नयन...
Jyoti Khari
जब तुम हारने लग जाना,तो ध्यान करना कि,
जब तुम हारने लग जाना,तो ध्यान करना कि,
पूर्वार्थ
" चम्मच "
Dr. Kishan tandon kranti
मैं बेबाक हूँ इसीलिए तो लोग चिढ़ते हैं
मैं बेबाक हूँ इसीलिए तो लोग चिढ़ते हैं
VINOD CHAUHAN
पराठों का स्वर्णिम इतिहास
पराठों का स्वर्णिम इतिहास
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
कर्म ही हमारे जीवन...... आईना
कर्म ही हमारे जीवन...... आईना
Neeraj Agarwal
*दूर चली जाओगी जीजी, फिर जाने कब आओगी (गीत)*
*दूर चली जाओगी जीजी, फिर जाने कब आओगी (गीत)*
Ravi Prakash
ईश्वर का लेख नियति से बदल गया
ईश्वर का लेख नियति से बदल गया
Trishika S Dhara
दामन भी
दामन भी
Dr fauzia Naseem shad
गम के पीछे ही खुशी है ये खुशी कहने लगी।
गम के पीछे ही खुशी है ये खुशी कहने लगी।
सत्य कुमार प्रेमी
जी करता है , बाबा बन जाऊं – व्यंग्य
जी करता है , बाबा बन जाऊं – व्यंग्य
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
एक दिवस में
एक दिवस में
Shweta Soni
याद आती है हर बात
याद आती है हर बात
Surinder blackpen
सच्चे होकर भी हम हारे हैं
सच्चे होकर भी हम हारे हैं
नूरफातिमा खातून नूरी
मुझे वो सब दिखाई देता है ,
मुझे वो सब दिखाई देता है ,
Manoj Mahato
आमदनी ₹27 और खर्चा ₹ 29
आमदनी ₹27 और खर्चा ₹ 29
कार्तिक नितिन शर्मा
समय अपवाद से नहीं ✨️ यथार्थ से चलता है
समय अपवाद से नहीं ✨️ यथार्थ से चलता है
©️ दामिनी नारायण सिंह
* थके पथिक को *
* थके पथिक को *
surenderpal vaidya
नशा रहता है इस दर्द का।
नशा रहता है इस दर्द का।
Manisha Manjari
कृष्ण मुरारी आओ
कृष्ण मुरारी आओ
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
*खादिम*
*खादिम*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
सीता के बूंदे
सीता के बूंदे
Shashi Mahajan
हृदय पुकारे आ रे आ रे , रो रो बुलाती मेघ मल्हारें
हृदय पुकारे आ रे आ रे , रो रो बुलाती मेघ मल्हारें
Dr.Pratibha Prakash
चल पनघट की ओर सखी।
चल पनघट की ओर सखी।
Anil Mishra Prahari
वो ख्वाब
वो ख्वाब
Mahender Singh
Vo yaad bi kiy yaad hai
Vo yaad bi kiy yaad hai
Aisha mohan
रातें ज्यादा काली हो तो समझें चटक उजाला होगा।
रातें ज्यादा काली हो तो समझें चटक उजाला होगा।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
3702.💐 *पूर्णिका* 💐
3702.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
Loading...