बोध कथा। अनुशासन
एक धार्मिक बोध कथा
जीवन में कई बार कठोर फैसले लेने पड़ते हैं। घर हो तो फैसले न हों तो घर नहीं चलता। संतान के आगे समर्पण कर दो तो घर नहीं चलता। संतान की न सुनो तो घर नहीं चलता। यही नियम सृष्टि का है। देवलोक में तो सारे देव हैं। कौन किसकी सुने। इसी बार पर एक बार बहस छिड़ गई कि हममें से कौन श्रेष्ठ है। ब्रह्मा जी बोले, मैं श्रेष्ठ हूं। मैंने ही सृष्टि रची। मुझसे बढ़कर कौन? यदि मैं नहीं होता तो न तुम होते और न सृष्टि, न वनस्पति, न जीव न जंतु। विष्णु जी हार मानने को तैयार नहीं थे। वह बोले, पैदा करने से क्या होता है। जन्म से बढ़कर पालन-पोषण महत्वपूर्ण होता है। पैदा कर दो लेकिन पेट भरने को दो रोटी भी न मिले तो जन्म देना बेकार है। सृष्टि नियमों से चलती है। अनुशासन से चलती है। अति हर चीज की बुरी होती है। मैं जगत् का पालनहार हूं। मैं सृष्टि को अनुशासन में रखता हूं। मैं न हूं तो सृष्टि चले ही नहीं। मेरी पत्नी हैं लक्ष्मी। धन की देवी। धन और अन्न सृष्टि का केंद्र हैं। हम दोनों इसके अधिष्ठाता हैं। मैं पालनहार हूं। इसलिए, मैं सर्वश्रेष्ठ हूं।
शंकर जी शांति से सुन रहे थे। वह बोले, ब्रह्मा जी भी ठीक। विष्णु जी आप भी ठीक। लेकिन यह तो बताओ, सृष्टि का अनुशासन किससे चलता है। जो आया है, वो जाएगा। अगर कोई जाये ही नहीं तो सृष्टि कैसे चलेगी? जन्म होते रहें लेकिन मृत्यु या मोक्ष न हो तो ? यह कार्य तो मैं करता हूं। इसलिए, मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूं। तीनों देवों में बहस चल रही थी। तभी एक प्रकाश प्रगट होता है। आकाशवाणी होती है…..कोई सर्वश्रेष्ठ नहीं। मैं सर्वश्रेष्ठ हूं। मैं ही प्रकाश हूं। मैं ही अंतरात्मा हूं। मेरे से ही जग उत्पन्न हुआ है। मुझमें ही समाया है। यह धरती यह आकाश, यह दिन ये रात। ये देव और देवी….मेरा ही अंश हैं। सृष्टि तो प्रकाश पुंज है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश नतमस्तक हो गए। फिर आकाशवाणी होती है…..जो मैं को मार देगा, वही सर्वश्रेष्ठ है।
निष्कर्ष-सार
1. घर हो या सृष्टि अनुशासन सर्वप्रथम है
2. अपने मैं को मारो, सदा बोलो…हम
3. संगठऩ में शक्ति है। टीम वर्क से ही विजय मिलती है
4. ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के धर्म और कार्य विभक्त हैं तो हमारे क्यों नहीं।
5. अपने अंदर के प्रकाश को प्रदीप्त करो। यही प्रकाश आपको सुख, शांति, समृद्धि, ज्ञान देगा
6. इसी बोधकथा का आध्यात्मिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और शारीरिक तत्व है…तीन चरणीय व्यवस्था।
तीन ही देव, तीन ही देवी, तीन ही लोक, तीन भागों में शरीर विभक्त है। तीन पूर्वजों का ही हम श्राद्ध करते हैं।
7. हमारी हर सामाजिक-राजीतिक व्यवस्था भी तीन चरणीय है।
8. इस कथा के भी तीन ही संदेश हैं….मैं को मारो, अनुशासन रखो, अंतस का प्रकाश देखो।
-सूर्यकांत द्विवेदी