*बेवजह कुछ लोग जलते हैं 【हिंदी गजल/गीतिका】*

*बेवजह कुछ लोग जलते हैं 【हिंदी गजल/गीतिका】*
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(1)
किसी को देखकर खुश, बेवजह कुछ लोग जलते हैं
भरे मुँह में शहद, छुरियाँ बगल में ले के चलते हैं
(2)
हमेशा गलतियों से ही सभी झगड़े नहीं होते
गलतफहमी से भी अक्सर, छुरी-चाकू निकलते हैं
(3)
लकीरें हाथ की पढ़ना ही, अंतिम सच नहीं होता
चलो कोशिश से अब हम इन लकीरों को बदलते है
(4)
हुए मोबाइलों में लीन, बच्चे आजकल ऐसे
दुकानों पर खिलौने देखकर अब कब मचलते हैं
(5)
हकीकत से भले ही दूर कोसों हों मगर फिर भी
दिमागों में हमेशा, जिंदगी-भर स्वप्न पलते हैं
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*रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
*मोबाइल 99976 15451*