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6 Jul 2024 · 1 min read

बेरंग हकीकत और ख्वाब

बेरंग हक़ीक़त को कभी ख़्वाब नहीं देखा
आँखों ने कभी चाँद का माहताब नहीं देखा

कहने को बहुत कुछ है मगर कह नहीं पाता
दिल की ये बातें कभी लिखताब नहीं देखा

राहों में जो कांटे थे सभी चुपचाप सह लिए
जिनमें भी बसा दर्द का हिसाब नहीं देखा

वो आँखें जो सच्चाई से हमेशा डरती थीं
उन आँखों ने कभी सच का इंक़लाब नहीं देखा

दिल के किसी कोने में दबे हैं राज़ हज़ार
किसी ने कभी ये बंद किताब नहीं देखा

जिन्हें अपने सपनों में बसाना था एक दिन
उन रास्तों का फिर मैंने हिसाब नहीं देखा

खामोशी से चलते रहे हैं अपने सफर में
पीछे मुड़कर हमने कभी सराब नहीं देखा

वक़्त ने दिखाया है हमें हर एक चेहरा
पर सच को कभी हमने नक़ाब नहीं देखा

Language: Hindi
80 Views
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