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5 Jul 2016 · 1 min read

बेबस बदन देखा

हमने यहीं पर ये चलन देखा
हर गैर में इक अपनापन देखा

देखी नुमाइश जिस्म की फिरभी
जूतों से नर का आकलन देखा

हर फूल ने खुश्बू गजब पायी
महका हुआ सारा चमन देखा

लिक्खा मनाही था मगर हमने
हर फूल छूकर आदतन देखा

उस दम ठगे से रह गए हम यूँ
फूलों को भँवरों में मगन देखा

होती है रुपियों से खनक कैसे
हमने भी रुक-रुक के वो फन देखा

रोशन चिरागों के तले देखे
गलता हुआ बेबस बदन देखा

~ अशोक कुमार रक्ताले

1 Like · 4 Comments · 622 Views
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