Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Jun 2019 · 4 min read

बूढ़े बरगद के पार

संतुष्टि की कोई तय परिभाषा नहीं होती। बच्चा कुदरत में रोज़ दोहराये जाने वाली बात को अपने जीवन में पहली बार देख कर संतुष्ट हो सकता है, वहीं अवसाद से जूझ रहे प्रौढ़ को दुनिया की सबसे कीमती चीज़ भी बेमानी लगती है। नवीन के चाय बागान अच्छा मुनाफा दे रहे थे। इसके अलावा अच्छे भाग्य और सही समझ के साथ निवेश किये गए पैसों से वह देश के नामी अमीरों में था। एक ही पीढ़ी में इतनी बड़ी छलांग कम ही लोग लगा पाते हैं। हालांकि, नवीन संतुष्ट नहीं था। मन में एक कसक थी…उसके पिता हरिकमल।

जब नवीन संघर्ष कर रहा था तब उसके पिता हर कदम पर उसके साथ थे। वे अपने जीवन के अनुभव उससे बांटते, निराश होने पर उसे हौंसला देते और यहाँ तक कि उसके लिए कितनी भागदौड़ करते थे। ऐसा भी नहीं था कि ये कुछ सालों की बात थी। अब नवीन की उम्र 53 साल थी और उसके पिता करीब 82 साल के थे। आज जब जीवन स्थिर हुआ तो अलजाइमर के प्रभाव में वे पुराने हरिकमल जी कहीं गुम हो गए। नवीन के लिए बात केवल खोई याददाश्त की नहीं थी, मलाल था कि ऊपरवाला कुछ कम भी देता पर ऐसा समय देखने के लिए पिता को कुछ ठीक रखता।

“बरगद…”

हरिकमल अक्सर ये शब्द बुदबुदाते रहते थे। कसक का इलाज ढूंढ रहे नवीन ने इस शब्द पर ध्यान तो दिया पर कभी इसपर काम नहीं किया। एक दिन दिमाग को टटोलते हुए नवीन ने इस बरगद की जड़ तक जाने की ठान ली। कुछ पुराने परिजनों से और कुछ अपनी धुंधली यादों से तस्वीर बनाई। गांव में घर के पास बड़ा सा बरगद का पेड़। खेती-बाड़ी करने के बाद पिताजी उसकी छांव में बैठा करते थे। इसके अलावा हरिकमल कुछ और भी कहते रहते थे पर वह बात पूरा ध्यान देने पर भी समझ नहीं आती थी। ऐसा लगता था जैसे बरगद के बाद बोली बात उनके मन में तो है पर होंठो तक आते-आते बिखर जाती थी। क्या पता वह दूसरी बात अलजाइमर के प्रभाव में उन्हें याद न हो….या वे खुद बोलना न चाहते हों। अब अधूरी तस्वीर में एक पुराना बरगद था और बाकी यादों के कोहरे में छिपी कोई बात। चलो पूरी न सही एक सिरा ही सही।

नवीन ने विशेषज्ञों का एक दल पिताजी के आधे-अधूरे वर्णनों को पकड़ने में लगा दिया।

“बरगद…”

यह शब्द और इसके अलावा जो कुछ भी हरिकमल कहते उसपर गहन चर्चाएं होती, कलाकारों से स्केच बनवाये जाते और कंप्यूटर की मदद से उन्हें असलियत के करीब लाया जाता। परिजनों और नवीन की यादों पर शोध कार्य हुए। अंत में नवीन के एक फार्म हाउस का बड़ा हिस्सा साफ़ करके उसमें गांव जैसा पुराना घर और दूसरे शहर से जड़ों के नीचे कई मीटर मिट्टी समेत विशाल, पुराने बरगद को लगाया गया। कच्चे मकान और बरगद की कटाई छटाई इस बारीकी से की गई थी कि वो सबकी यादों के आइनों के सामने खरे उतर सकें।

“बरगद…”

लो बरगद तो आ गया। नवीन, सारे परिजन और उसका अनोखा दल ‘बरगद’ पर हरिकमल जी की प्रतिक्रिया जानने को बेचैन था। हालांकि, डॉक्टरों ने किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद रखने की सलाह नहीं दी थी। फिर भी ये अनोखा प्रयोग और इससे जुड़ी मेहनत, भावनाएं जैसे डॉक्टरों की सलाह को अनदेखा करने की अपनी ही सलाह दे रही थीं।

हरिकमल को फार्म हाउस लाया गया। इस बात का पूरा खयाल रखा गया कि उन्हें अचानक बड़ा झटका न लगे। बरगद को ढ़ककर रखा गया। धीरे-धीरे उन्हें पुराने घर से जुड़ी चीज़ें दिखाई गईं, वैसे तापमान और खेतों में कुछ दिनों तक रोज़ थोड़ी देर के लिए रखा गया। जब उनकी प्रतिक्रिया और सेहत सही बनी रही तो आख़िरकार पुराने बरगद से उनके मिलने की तारीख तय हुई।

“बरगद…”
वह दिन भी आया। हरिकमल से मिलने उनका ‘बरगद’ आया था। वे बरगद से किसी पुराने यार की तरह लिपट गए। बरगद से ही उनका लंबा एकालाप में लिपटा वार्तालाप चला। उनकी ख़ुशी और संतुष्टि देख कर सभी अपनी मेहनत सफल मान रहे थे। इतने में हरिकमल ज़मीन पर निढाल होकर रोने लगे। सब कुछ ठीक तो हो गया था? अब क्या रह गया?

सब सवालों से घिरे थे पर नवीन को जैसे जवाब पता था या शायद वह इस घटना का इंतज़ार कर रहा था। अपने दल और नौकरों को हरिकमल से दूर हटाकर नवीन उनसे लिपट गया।

“देख…बाबू…”

“बोलो पिता जी, क्या रह गया? क्यों परेशान हो…इतने सालों से। क्यों मुँह में मर जाती है बरगद के बाद दूसरी बात?”

दहाड़े मारते हरिकमल बोले – “बरगद तो आ गया…”

“बरगद तो आ गया…पर पुराना माहौल नहीं आया।”

समाप्त!
=======

Language: Hindi
Tag: कहानी
1 Like · 1 Comment · 192 Views
You may also like:
गांठे खोलने वाला शिक्षक-सुकरात
गांठे खोलने वाला शिक्षक-सुकरात
Shekhar Chandra Mitra
बाल कविता
बाल कविता
आर.एस. 'प्रीतम'
दुख आधे तो पस्त
दुख आधे तो पस्त
RAMESH SHARMA
"हठी"
Dr. Kishan tandon kranti
यारा ग़म नहीं
यारा ग़म नहीं
Surinder blackpen
"शिवाजी महाराज के अंग्रेजो के प्रति विचार"
Pravesh Shinde
My Expressions
My Expressions
Shyam Sundar Subramanian
एतबार पर आया
एतबार पर आया
Dr. Sunita Singh
सरकार और नेता कैसे होने चाहिए
सरकार और नेता कैसे होने चाहिए
Ram Krishan Rastogi
HE destinated me to do nothing but to wait.
HE destinated me to do nothing but to wait.
Manisha Manjari
"REAL LOVE"
Dushyant Kumar
बाल कहानी- चतुर और स्वार्थी लोमड़ी
बाल कहानी- चतुर और स्वार्थी लोमड़ी
SHAMA PARVEEN
👨‍🎓मेरा खाली मटका माइंड
👨‍🎓मेरा खाली मटका माइंड
Ankit Halke jha
THOUGHT
THOUGHT
साहित्य लेखन- एहसास और जज़्बात
نظریں بتا رہی ہیں تمھیں مجھ سے پیار ہے۔
نظریں بتا رہی ہیں تمھیں مجھ سے پیار ہے۔
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
उलझन ज़रूरी है🖇️
उलझन ज़रूरी है🖇️
Skanda Joshi
नमन माँ गंग !पावन
नमन माँ गंग !पावन
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
भाई हो तो कृष्णा जैसा
भाई हो तो कृष्णा जैसा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
*तस्वीरें-बस-शेष (कुंडलिया)*
*तस्वीरें-बस-शेष (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
मृगतृष्णा
मृगतृष्णा
Pratibha Kumari
💐प्रेम कौतुक-316💐
💐प्रेम कौतुक-316💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
कृतज्ञता
कृतज्ञता
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
■ जय लूट-तंत्र...
■ जय लूट-तंत्र...
*Author प्रणय प्रभात*
बेटियाँ
बेटियाँ
विजय कुमार अग्रवाल
नव वर्ष
नव वर्ष
Satish Srijan
कट्टरता बड़ा या मानवता
कट्टरता बड़ा या मानवता
राकेश कुमार राठौर
मेरी परछाई बस मेरी निकली
मेरी परछाई बस मेरी निकली
Dr fauzia Naseem shad
घुमंतू की कविता #1
घुमंतू की कविता #1
Rajeev Dutta
आनी इक दिन मौत है।
आनी इक दिन मौत है।
Taj Mohammad
✍️क्या ये सच नही..?
✍️क्या ये सच नही..?
'अशांत' शेखर
Loading...