*बूढ़े तन के धरती से ,चलने की तैयारी है【हिंदी गजल/गीतिका*

बूढ़े तन के धरती से ,चलने की तैयारी है【हिंदी गजल/गीतिका
■■■■■■■■■■■■■■■■
(1)
बूढ़े तन के धरती से , चलने की तैयारी है
गया जन्म बेकार यही , बड़ी एक दुश्वारी है
(2)
एक-एक दिन कर के साँसें ,हो जाती हैं पूरी
देह युद्ध में सदा मरण से, हर युग में हारी है
(3)
फिर से आओ थोड़ा समझें ,क्या है अर्थ जगत का
शुरू हुई फिर एक बार यह ,जीवन की पारी है
(4)
कितनी बार जन्म ले-लेकर, हम दुनिया में आए
जन्म-मरण का चक्र हमारा,पर अब भी जारी है
(5)
पैदा होकर किया ब्याह , दो पैसे रोज कमाए
बसा गृहस्थी मर जाता , हर एक देहधारी है
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451