*बुरे फँसे नुकती के लड्डू की तारीफ कर के( हास्य व्यंग्य )*

*बुरे फँसे नुकती के लड्डू की तारीफ कर के( हास्य व्यंग्य )*
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हुआ यह कि हलवाई की दुकान पर एक ग्राहक मिठाई माँगने के लिए आया। उसने कहा ” कौन सी मिठाई ज्यादा अच्छी है?”
ग्राहक क्योंकि जान पहचान का था । प्रश्न सहज रूप से किया गया था । इसलिए दुकानदार ने भी सहजता से कह दिया ” नुकती के लड्डू अभी-अभी ताजा बन कर आए हैं। बहुत स्वादिष्ट हैं।”
ग्राहक बोला ” एक किलो तोल दीजिए।”
दुकानदार ने डिब्बा उठाया। लड्डू तोलना शुरू कर दिया । बस यहीं से बात बिगड़ गई। जैसे ही अन्य मिठाइयों को इस घटनाक्रम का पता चला ,वह आग-बबूला हो गयीं।
मोर्चा सबसे पहले हलवे ने संभाला । उसने तुरंत अपने स्थान से उठकर काउंटर पर स्थान ग्रहण कर लिया और आँखें तरेर कर हलवाई से कहा ” इतनी जल्दी बदल गए ? क्या तुम्हें वह दिन याद नहीं ,जब हमारे कारण ही तुम्हारा नाम हलवाई पड़ा था ? हलवा बेच-बेच कर तुमने अपनी दुकान तो मशहूर कर ली और खुद हलवाई बन बैठे । हमें एक कोने में डाल कर आज इस लड्डू की तारीफ कर रहे हो । यह तो हर जगह गली-चौराहों पर थैलियों में बिकने वाली चीज थी ।आज तुम इसे अपने मुँह से सबसे बढ़िया मिठाई बता रहे हो ! हमारे इतिहास पर तुम्हारी निगाह नहीं गई ? ”
अब बारी नुकती की थी । उसने भी परात से बाहर आकर दुकानदार को डाँट- फटकार लगाई। बोली “हम छोटे लोग हैं, इसलिए तुमने हमारी उपेक्षा कर दी । जबकि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर रैलियों में हम ही बाँटे जाते हैं और राष्ट्रीय पर्व हमारे साथ ही मिलकर मनाया जाता है।”
छोटे-छोटे पेड़े अब ” हलवाई हाय – हाय “के नारे लगाने लगे । उनका कहना था ” हमें तो लोग हल्का वजन होने के कारण सभी जगह खुशी-खुशी ले जाते हैं ,जबकि लड्डू इतना भारी होता है कि एक किलो में तीस-बत्तीस से ज्यादा नहीं चढ़ते। इतने भारी, आलसी और वजनदार लड्डू के मुकाबले में हम फिटफाट-पेड़ों को तुमने कोई महत्व नहीं दिया । यह तानाशाही नहीं चलेगी।”
जलेबी और इमरती उसी समय रोती हुई आ गईं। आंदोलन में उनके उतरने से रौनक आ गई । कहने लगीं ” हम घी में तले जा रहे थे और चाशनी में डाले जा रहे थे। क्या हम फिर भी बासी हैं ? यह तो कोई आँख का अंधा भी देख कर बता देगा कि हम गरम-गरम कढ़ाई से निकल कर आए हैं । क्या हम ताजे नहीं हैं ? हम से ताजा भला और कौन हो सकता है ? ”
सोन पपड़ी अपनी जगह नाराज थी। बात यहीं तक नहीं रुकी। लड्डुओं की दूसरी वैरायटी भी नाराज होने लगीं। उनका तर्क था ” नुकती के लड्डू अगर अच्छे हैं तो हम बेसन और आटे के लड्डू क्या खराब हैं ? जरा सोचो एक से एक अच्छी वैरायटी के लड्डू दुकान पर तुम्हारी मौजूद थे और तुमने इस नुकती के लड्डू की ही तारीफ क्यों कर दी ? मेवा – खजूर का लड्डू सबसे बेहतरीन कहलाता है । तुमने उसकी भी उपेक्षा कर दी । क्यों..आखिर क्यों ? ”
दुकानदार अजीब मुसीबत में फँस गया था । ग्राहक घबराने लगा । बोला “साहब ! आप अपने मसले निपटाते रहो ,मैं तो जा रहा हूँ।” ग्राहक जब जाने लगा तो दुकानदार ने उसे रोका और मिठाइयों से कहा ” तुम आपसी झगड़े में हमारी दुकान बंद करा दोगे।”
फिर उसे अपनी गलती का एहसास भी हुआ । बोला ” ! हाँ मुझे किसी एक की तारीफ नहीं करनी चाहिए थी। मेरी नजर में तुम सब बराबर हो ।”
उसने ग्राहक से कहा “अब मसला सुलझाओ और जैसे भी हो ,दुकान से मिठाई तुलवाओ ”
ग्राहक बोला ” ठीक है ! मिक्स – मिठाई कर दो । सब तरह की मिठाइयाँ एक – एक दो – दो पीस कर दो ।”
दुकानदार ने ऐसा ही किया । ग्राहक और दुकानदार दोनों ने चैन की साँस ली। फिर इसके बाद ग्राहक जब घर पहुँचा तो पत्नी ने कहा ” यह बताओ कि सब्जी कौन सी पसंद है । मैं जो आलू मटर की रसीली बनाती हूँ या फिर सूखी मटर की बनाती हूँ।जो कहो ,वही बना दूँगी ? ”
ग्राहक बेचारा अभी-अभी हलवाई के यहाँ से सर्वोत्तम मिठाई के झगड़े को सुनकर आया था । उसने उदासीन भाव से कह दिया “जो चाहे बना लो । मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता ।”
बस, सुनकर पत्नी आग बबूला हो गई। बोली ” तुम्हें तो मेरे हाथ की कोई चीज पसंद ही नहीं आती ! जरा-सी तारीफ करते हुए मुँह घिसता है ! जाओ ,बाहर जाकर खा लो। आज घर में कुछ नहीं बनेगा ।” पतिदेव की समझ में यह नहीं आ पा रहा था कि आखिर गलती कहाँ हुई ?
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
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