*बुरा न मानो होली है(हास्य व्यंग्य)*

बुरा न मानो होली है(हास्य व्यंग्य)
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जिस किसी ने भी यह नारा दिया है कि बुरा न मानो होली है , वह बहुत बुद्धिमान व्यक्ति रहा होगा । उसे पता है कि दूसरे व्यक्ति के साथ कुछ ऐसा किया जा रहा है, जो उसे बुरा लगेगा । इसलिए होली के अवसर का लाभ उठाते हुए पहले तो उसको भड़का दिया और फिर उसके बाद जब भड़कने पर आया , तब उसके सामने यह कहने लगे कि बुरा न मानो होली है । यानि बुरा मानने की परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
अच्छे खासे धुले हुए, प्रेस किए हुए कपड़े पहनकर आदमी ससुराल जाता है और वहाँ पर सालियाँ उसके नए रेडीमेड कपड़े रंग में पोत देती हैं। बेचारा बुरी तरह से लाल- पीला होना चाहता है लेकिन तभी यह स्वर उठता है “जीजा जी ! बुरा न मानो होली है” अर्थात होली के अवसर पर बुरा नहीं माना जाता। बेचारा जीजा मुस्कुराकर रह जाता है । थोड़ा आगे बढ़ता है । खाट पर बैठता है। नीचे धड़ाम से गिर जाता है। खाट खाली है। अर्थात बिना बुनी हुई है । केवल चादर बिछी थी । फिर गुस्से में लाल- पीला होता है। मगर फिर यही सुनने को मिलता है “बुरा न मानो होली है “।
हालत तो तब खराब होती है जब व्यक्ति को भोजन में भाँग मिला दी जाती है और भरपेट खिला दिया जाता है। दिन भर सोता रहता है और जब उठता है , तब सोचता है कि आज कौन सा दिन है ? तब उसको बताया जाता है कि होली तो बीत गई । वह बुरा मानता है। लेकिन फिर वही आवाज उसके कानों में पड़ती है -“बुरा न मानो होली है ”
कई लोगों को तो सड़क पर जाते-जाते उनकी रिक्शा-कार – स्कूटर आदि रोककर लोग रंग से पोत देते हैं। वह बेचारे पता नहीं किस काम से जा रहे होते हैं। कई बार आवश्यक कार्य भी होता है। लेकिन क्या कर सकते हैं ? लोग- बागों ने पहले पोता और उसके बाद शोर मचा दिया” बुरा न मानो होली है ।”
कई लोग गुब्बारे अपने घर की छतों से दूसरे घरों की छतों पर फेंकते हैं । सड़कों पर फेंकते हैं । आते – जाते व्यक्तियों को निशाना बनाते हैं। किसी के चोट लग जाए तो भी उन्हें क्या ! उन्हें तो केवल एक ही नारा आता है -“बुरा न मानो होली है ”
होली वाले दिन किसी के कपड़े फाड़ दो और फिर कह दो “बुरा न मानो होली है”, तो काम चल जाता है । अर्थात होली वाले दिन सॉरी अथवा माफ कीजिए अथवा क्षमा कीजिए आदि शब्दों के स्थान पर “बुरा न मानो होली है” यह शब्द- प्रयोग प्रचलन में आ गया है । अगर कोई कहे “बुरा न मानो होली है” तो इसका मतलब है कि जरूर कोई ऐसा काम हुआ है या हो रहा है या होने वाला है ,जिसमें बुरा लगना आवश्यक है।
तो क्यों न हम ऐसा काम करें, जिसमें व्यक्ति को बुरा लगे ही नहीं । उसको सुंदर – सुंदर पकवान खिलाओ। दहीबड़े खिलाओ । इसमें कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी कि “बुरा न मानो होली है ।”
किसी व्यक्ति को केमिकल रंगों के स्थान पर फूलों की वर्षा करो , तब फिर कौन कहेगा “बुरा न मानो होली है”। किसी भी व्यक्ति के ऊपर जो जा रहा है, अनावश्यक रूप से बल प्रयोग करके रंगों से पोतने की कोशिश न की जाए, तो सब प्रफुल्लित हो उठेंगे और सिर्फ यही कहेंगे कि “होली है भई होली है” । तब फिर किसी को यह कहने की आवश्यकता नहीं रहेगी “बुरा न मानो होली है”
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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