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27 May 2024 · 1 min read

बीत गया सो बीत गया…

अब क्या कोई आस लगानी, हर सुख अपना रीत गया।
वक्त कड़ा था दोष बड़ा था, बीत गया सो बीत गया।

अपने सुख में डूबे सारे, कौन किसी से बात करे।
मिले उपेक्षा जो अपनों से, दिल पे कटु आघात करे।
पीड़ा देता वर्तमान अब, पीछे बहुत अतीत गया।

मन को मारे रहते गुमसुम, किससे मन की बात कहें ?
कहते जो कहलाती दुनिया, दिन को भी अब रात कहें।
पतझर दिन हैं पावस रातें, जब से घर से मीत गया।

कितने अरमां कितने सपने, मन में अपने रहते थे।
अपने ही सुख देख हमारा, उखड़े-उखड़े रहते थे।
नीरसता पसरी जीवन में, रूठ कहीं संगीत गया।

सुख-दुख में समभाव रहे हम, कुछ न किसी से कहते थे।
छल-प्रपंच दुनिया के लेकिन, घात लगाए रहते थे।
भाग्य छली था सेंध लगाकर, जीत गया सो जीत गया।

वक्त कड़ा था दोष बड़ा था, बीत गया सो बीत गया।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
” अवनिका ” से

3 Likes · 2 Comments · 108 Views
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