Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Jun 2024 · 1 min read

बाजार

बाजार अक्सर भीड़ से भरे थे
वे बाजार थे सायद इसलिए भरे थे
जरूरतों से भरी और भी दुकानें थी मगर वे दूरदराज में वीरान पड़ी थी
लोग आते थे मगर जब जरूरत कद से बड़ी थी
भूल जी जाते बहुत शीघ्र
क्योंकि आदत बड़ी थी
नारजगी कैसी
किसको किसकी पड़ी थी
भीड़ में और भीड़
किसको सुकून की पड़ी थी

प्रद्युम्न अरोठिया

74 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
वो जो बातें अधूरी सुनाई देती हैं,
वो जो बातें अधूरी सुनाई देती हैं,
पूर्वार्थ
अभिनेता बनना है
अभिनेता बनना है
Jitendra kumar
पीर
पीर
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
शीर्षक - जय पितर देव
शीर्षक - जय पितर देव
Neeraj Agarwal
മയിൽപ്പീലി-
മയിൽപ്പീലി-
Heera S
🙅सियासी मंडी में🙅
🙅सियासी मंडी में🙅
*प्रणय*
तल्खियां
तल्खियां
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
बचपन की यादें
बचपन की यादें
Anamika Tiwari 'annpurna '
ज़िदादिली
ज़िदादिली
Shyam Sundar Subramanian
रंज-ओ-सितम से दूर फिरसे इश्क की हो इब्तिदा,
रंज-ओ-सितम से दूर फिरसे इश्क की हो इब्तिदा,
Kalamkash
ग़म भूल जाइए,होली में अबकी बार
ग़म भूल जाइए,होली में अबकी बार
Shweta Soni
55…Munsarah musaddas matvii maksuuf
55…Munsarah musaddas matvii maksuuf
sushil yadav
अपने कदमों को
अपने कदमों को
SHAMA PARVEEN
"अहसास के पन्नों पर"
Dr. Kishan tandon kranti
24/225. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
24/225. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
इतने भी नासमझ ना समझो हमको
इतने भी नासमझ ना समझो हमको
VINOD CHAUHAN
जब भर पाया ही नहीं, उनका खाली पेट ।
जब भर पाया ही नहीं, उनका खाली पेट ।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
--पुर्णिका---विजय कुमार पाण्डेय 'प्यासा'
--पुर्णिका---विजय कुमार पाण्डेय 'प्यासा'
Vijay kumar Pandey
अब किसी की याद पर है नुक़्ता चीनी
अब किसी की याद पर है नुक़्ता चीनी
Sarfaraz Ahmed Aasee
पापा
पापा
Lovi Mishra
अंधेरा कभी प्रकाश को नष्ट नहीं करता
अंधेरा कभी प्रकाश को नष्ट नहीं करता
हिमांशु Kulshrestha
कही दूर नहीं हो ,
कही दूर नहीं हो ,
Buddha Prakash
तेरे जाने का गम मुझसे पूछो क्या है।
तेरे जाने का गम मुझसे पूछो क्या है।
Rj Anand Prajapati
*धारा सत्तर तीन सौ, स्वप्न देखते लोग (कुंडलिया)*
*धारा सत्तर तीन सौ, स्वप्न देखते लोग (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
चोट दिल  पर ही खाई है
चोट दिल पर ही खाई है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
अपनी सत्तर बरस की मां को देखकर,
अपनी सत्तर बरस की मां को देखकर,
Rituraj shivem verma
अब तो  सब  बोझिल सा लगता है
अब तो सब बोझिल सा लगता है
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
हम सा भी कोई मिल जाए सरेराह चलते,
हम सा भी कोई मिल जाए सरेराह चलते,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
अपनी नज़र में
अपनी नज़र में
Dr fauzia Naseem shad
वज़्न -- 2122 2122 212 अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन बह्र का नाम - बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ
वज़्न -- 2122 2122 212 अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन बह्र का नाम - बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ
Neelam Sharma
Loading...