बहुत ख्वाब देखता हूँ मैं
बहुत ख्वाब देखता हूँ मैं,हसीन उस आसरे के,
जिसमें हर चीज हो,श्रंगारित काम की,
जिसका हर सामान,देता हो सुकून दिल को,
मौजूद हो जिसमें हर ख्वाब इसलिए,
ताकि देख सकूं मैं भी, अपना ख्वाब उसमें,
जिसके सभी तत्त्व उत्साहित करें मुझको।
बहुत ख्वाब देखता हूँ मैं, हसीन तुम्हारे भी,
क्योंकि तुझमें कशिश है, तू वह सुंदर चित्र है,
जिसको देखता हूँ मैं, अपनी तस्वीरों में,
सजीव हो जाता है, मेरा दिलो – दिमाग,
तुमको पाकर महक उठता है,मेरा चमन,
मुस्कराती हो जब तुम,सच में तुम जन्नत हो,
मेरी मंजिलो-दुनिया हो,मेरे सपनों की किताब हो।
बहुत ख्वाब देखता हूँ मैं,
गमों-दर्द में डूबे चेहरों का, बदहाल जिंदगियों का,
बदनाम होते इश्को- हुस्न का,नष्ट नहीं हो प्रेम कभी, बदनाम नहीं हो प्यार कभी,डर जाता हूँ यह सोचकर मैं।
बहुत ख्वाब देखता हूँ मैं,
अपनी जमीन और चमन के,इसकी अहल- ओ- रूह के,
करता हूँ प्रार्थना मैं, सबके लिए खुशी की,
फलित हो यह वसुंधरा, सुवासित हो यह चमन,
बनी रहे हर हृदय में, इसके प्रति एकता एवं कर्त्तव्यनिष्ठा,
भाईचारा ,समानता, मानवता और सहिष्णुता,
करें प्रार्थनाऐं ऐसी ही यहाँ हर कोई,
अपने मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे और चर्च में,
अमर रहे शहीदों की शहादत और,
उन्नत रहे गर्व से यह तिरंगा, जी आजाद रहे वतन।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)