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10 Mar 2022 · 1 min read

बस रह जाएंगे ये जख्मों के निशां…

ये युद्ध भी थमेगा, क्रोध भी थमेगा
थमेगी ये प्रतिशोध की ज्वाला
मिल जाएंगे दुश्मन भी गले
और छलकाएंगे प्रेम का प्याला
पर युद्ध में जिसने तन-मन वारा
टूट जाएंगे उसके सपने-अपने
बस रह जाएंगे ये जख्मों के निशां…

तोप चली, चली बंदूक-तलवार
विभीषिका में टूटे कितने घर-द्वार
उसकी हार हुई उसकी जीत
उसने उसको कर दिया बर्बाद
भला युद्ध से कौन हुआ आबाद
खून का बदला खून होता है
अभी इतना ही समझा इसां
बस रह जाएंगे ये जख्मों के निशां…

जहां रहती थी बस्ती-हस्ती
जिंदा और जिंदगी की थी मस्ती
वहां अब रुंदन-क्रंदन है
जीतने वाले का ही वंदन है
कुछ की पूरी हुई आशा
बहुत झेल रहे निराशा
बारुद की दुर्गंध से भरी है फिजां
बस रह जाएंगे ये जख्मों के निशां…

नाम-मनमोहन लाल गुप्ता
मोबाइल नंबर-9927140483

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 208 Views
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