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27 May 2021 · 1 min read

बरसात

” बरसात”
– – – – – – – – –
महामारी की गोद में पनपी,
सदी की ये कैसी रिमझिम बरसात,
आसुओं की मोटी बूंद से,
छेद हो गई है धरा में।
धरा की छेद तो भर जाएगी,
जब होगी धूल मिट्टी समतल।
पर उस प्रेयसी के अश्कों को फिक्र किसको,
जिसके प्रियतम को चुरा ले गया काल।
असमय अपने आगोश में…

बरसात की पुर्व बेला में ही,
उसके दिल को करुणा से सींच गई ।
कैसी होगी उस प्रेयसी की ये,
बरसात की काली रात।
जिसके प्रियतम ने तोड़ दिया साँस की आश,
प्राण वायु की तलाश में…

विरह- वेदना से असह्य जीवन,
इस सदी की दर्दभरी होगी ये बरसात की रात।
सिहर उठता है उसका तन -मन,
जब सुनती छत से टपकती,
जल की बूंदे छन छन।
भींगी बरसाती रातों के सन्नाटे में…

झींगुरों की लामबंद कर्कश आवाज,
सूर्ख हुए अधरों की कपकपाहट ।
विरह वेदना को असहनीय बनाती,
मंद पर गयी है उसकी मदभरी अंगड़ाइयां अब।
पर तड़पती सांसों की गहराइयां अब।
भय से आकुल हुई है इस बरसात में…

भविष्य की कल्पनाओं पर,
नाग ने फन फैला दिया है।
काल का कोहराम बनकर,
परछाइयाँ डसने लगी है।
थम चुकी हैं अब घटा में गरजती वारिश की बुंदे,
पर न थमते नैन बादल घुमड़कर बरसात में…

मौलिक एवं स्वरचित

© *मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
मोबाइल न. – 8757227201

14 Likes · 22 Comments · 2292 Views
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