बरसात और तुम
जब तुमसे मिलने की ऋतु बरसात के साथ आती है,
तो मेरी आँखें पावस की दिशा में टकटकी लगाये देखती रहती हैं।
बरसात की हवा के स्पर्श में,
मेरी त्वचा तेरी मख़मली हाँथों को ढूंढ़ती रहती है।
सौंधी मिट्टी और तेरी खुशबू मिल कर जो इत्र बनाती हैं,
उसकी याद में मेरी नासिका मचलती रहती है।
घनी घटाओं की धीमी सी गड़गड़ाहट के बीच में,
मुझे तेरी खिलखिलाती हुई सी हंसी सुनाई देती रहती है।
मैं बंज़र ज़मीन बन जाता हूँ तेरी याद में,
और तू आकर मेरी अभिलाषाओं पे बरसती रहती है।
– सिद्धांत शर्मा