Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Jan 2023 · 3 min read

बरवै छंद

बरवै छंद के प्रणेता अकबर के नवरत्नों में से एक महाकवि अब्दुर्रहीम खानखाना ‘रहीम’ कहे जाते हैं। किंवदन्ती है कि रहीम का कोई सेवक अवकाश लेकर विवाह करने गया। वापस आते समय उसकी विरहाकुल नवोढा पत्नी ने उसके मन में अपनी स्मृति बनाए रखने के लिए दो पंक्तियाँ लिखकर दीं। रहीम का साहित्य-प्रेम सर्व विदित था सो सेवक ने वे पंक्तियाँ रहीम को सुनाईं। कहा जाता है कि वे पंक्तियाँ निम्नवत थीं-
प्रेम-प्रीति कौ बिरवा, चले लगाइ।
सींचन की सुधि लीजो, मुरझि न जाइ।।
इन पंक्तियों को सुनकर रहीमदास जी चकित रह गए। पंक्तियों में उन्हें ज्ञात छंदों से अलग गति-यति का प्रयोग था। सेवक को ईनाम देने के बाद रहीम ने पंक्ति पर गौर किया और मात्रा गणना कर उसे ‘बरवै’ नाम दिया। मूल पंक्ति में प्रथम चरण के अंत ‘बिरवा’ शब्द का प्रयोग होने से रहीम ने इसे बरवै कहा। रहीम के लगभग 225 तथा तुलसीदास जी के 70 बरवै हैं। विषम चरण का बारह मात्रा-भार भी ‘बरवै’ नामकरण का आधार माना जा सकता है। सम चरण के अंत में गुरु लघु (ताल या नन्द) होने से इसे ‘नंदा’ और दोहा की तरह दो पंक्ति और चार चरण होने से ‘नंदा दोहा’ कहा जाता है।
रहीमदास जी ने इस छंद का प्रयोग कर ‘बरवै नायिका भेद’ नामक ग्रन्थ की रचना की तथा गोस्वामी तुलसीदास जी की कृति ‘बरवै रामायण’ में भी इसी का प्रयोग किया गया है। भारतेंदु हरिश्चंद्र तथा जगन्नाथ प्रसाद ‘रत्नाकर’ आदि ने भी इसे अपनाया। उस समय बरवै रचना साहित्यिक कुशलता और प्रतिष्ठा का पर्याय था। दोहा की ही तरह दो पद, चार चरण तथा लय के लिए विख्यात छंद नंदा दोहा या बरवै लोक काव्य में प्रयुक्त होता रहा है।
बरवै एक अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसके विषम चरण (प्रथम, तृतीय) में बारह-बारह तथा सम चरण ( द्वितीय, चतुर्थ) में सात- सात मात्राएँ रखने का विधान है। सम चरणों के अन्त में जगण (जभान = लघु गुरु लघु) होने से बरवै की मिठास बढ़ जाती है। बरवै को अवधी का मूल छंद माना जाता है किंतु यह बाध्यकारी नहीं है। कोई भी छंद किसी भी भाषा में रचा जा सकता है। यदि कवि के सामर्थ्य पर निर्भर करता है। विषम चरणों के अंत में यदि तगण ( ताराज- दीर्घ दीर्घ लघु) का प्रयोग किया जाता है तो छंद रचना अत्यंत सरल हो जाता है और छंद के माधुर्य में भी अंतर नहीं आता। जगण का प्रयोग विशेष प्रयास की अपेक्षा रखता है।
मात्रा बाँट-
बरवै के चरणों की मात्रा बाँट 8+4 तथा 4+ 3 है। छन्दार्णवकार भिखारीदास ने बरवै छंद को परिभाषित करते हुए लिखा है-
पहिलहि बारह कल करु, बहरहुँ सत्त।
यही बिधि छंद ध्रुवा रचु, उनीस मत्त।।
छंद प्रभाकर में भानु कवि ने बरवै छंद को स्पष्ट करते हुए लिखा है-
विषमनि रविकल बरवै, सम मुनि साज।
कुछ बरवै छंद-
शारदे वरदायिनी, हंस सवार।
आ विराजो कंठ माँ, हो उद्धार।।1

विनती सुनो मम मातु,दे दो ज्ञान।
सिखा दो करके कृपा,छंद विधान।।2

अभिलाष उर यह आस,रचना छंद।
खुशियाँ मिले पढ़ जिन्हें,नर को चंद।।3

नेता जी सुभाष चंद्र बोस के जन्म दिवस पर कुछ बरवै छंद –
जन्म दिवस मना रहा,जिनका देश।
वे प्यारे हैं सुभाष ,सैनिक वेश।।1

नेता जी चलते थे, सीना तान।
रग रग में बसता था, हिंदुस्तान।।2

आजादी के बदले , माँगा खून।
सिर पर था बस उनके, एक जुनून।।3

उनकी चिंता केवल,सबकी मौज।
आजादी हित उनकी,खुद थी फौज।।4

आज़ाद हिंद सेना, उसका नाम।
अंग्रेजों से लड़ना,जिसका काम।।5

नारा दिया जिन्होंने, था जय हिंद।
और दहाड़े शेरों, की मानिंद।।6

दिल्ली चलो आज भी, सबको याद।
देश इन्हीं यत्नों से, है आज़ाद।।7
डाॅ. बिपिन पाण्डेय

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 151 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जून की दोपहर (कविता)
जून की दोपहर (कविता)
Kanchan Khanna
अजीब सूरते होती है
अजीब सूरते होती है
Surinder blackpen
दोहे
दोहे
सत्य कुमार प्रेमी
आहटें।
आहटें।
Manisha Manjari
आप अपना कुछ कहते रहें ,  आप अपना कुछ लिखते रहें!  कोई पढ़ें य
आप अपना कुछ कहते रहें , आप अपना कुछ लिखते रहें! कोई पढ़ें य
DrLakshman Jha Parimal
"तब कैसा लगा होगा?"
Dr. Kishan tandon kranti
चक्षु द्वय काजर कोठरी , मोती अधरन बीच ।
चक्षु द्वय काजर कोठरी , मोती अधरन बीच ।
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
😊 चलने दो चोंचलेबाजी-
😊 चलने दो चोंचलेबाजी-
*Author प्रणय प्रभात*
किस कदर है व्याकुल
किस कदर है व्याकुल
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)
कुत्ते की व्यथा
कुत्ते की व्यथा
नन्दलाल सिंह 'कांतिपति'
जिये
जिये
विजय कुमार नामदेव
कुछ लोग बात तो बहुत अच्छे कर लेते है, पर उनकी बातों में विश्
कुछ लोग बात तो बहुत अच्छे कर लेते है, पर उनकी बातों में विश्
जय लगन कुमार हैप्पी
माँ
माँ
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
रणक्षेत्र बना अब, युवा उबाल
रणक्षेत्र बना अब, युवा उबाल
प्रेमदास वसु सुरेखा
कोई इतना नहीं बलवान
कोई इतना नहीं बलवान
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
चंदा की डोली उठी
चंदा की डोली उठी
Shekhar Chandra Mitra
वो खिड़की जहां से देखा तूने एक बार
वो खिड़की जहां से देखा तूने एक बार
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
चैतन्य
चैतन्य
DR ARUN KUMAR SHASTRI
प्रथम नमन मात पिता ने, गौरी सुत गजानन काव्य में बैगा पधारजो
प्रथम नमन मात पिता ने, गौरी सुत गजानन काव्य में बैगा पधारजो
Anil chobisa
समय का एक ही पल किसी के लिए सुख , किसी के लिए दुख , किसी के
समय का एक ही पल किसी के लिए सुख , किसी के लिए दुख , किसी के
Seema Verma
आश्रय
आश्रय
goutam shaw
मतदान
मतदान
Sanjay
खास हो तुम
खास हो तुम
Satish Srijan
💞 रंगोत्सव की शुभकामनाएं 💞
💞 रंगोत्सव की शुभकामनाएं 💞
Dr Manju Saini
रंगोत्सव की हार्दिक बधाई-
रंगोत्सव की हार्दिक बधाई-
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
If life is a dice,
If life is a dice,
DrChandan Medatwal
"राखी के धागे"
Ekta chitrangini
* जिंदगी में कब मिला,चाहा हुआ हर बार है【मुक्तक】*
* जिंदगी में कब मिला,चाहा हुआ हर बार है【मुक्तक】*
Ravi Prakash
मुक्तक
मुक्तक
प्रीतम श्रावस्तवी
💐 Prodigy Love-27💐
💐 Prodigy Love-27💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
Loading...