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27 Oct 2016 · 1 min read

बनें सभी सत्पथ अनुगामी ::: जितेंद्रकमलआनंद ( पोस्ट११९)

गीत
व्यर्थ की हठता ,आज विवशता, कल परवशता मत रोये
क्षणिक सुखोंके लिए विवश हो, पल अनगिन अनमोल गये ।।

काम- क्रोध ,ममता विष त्यागें ,हम विषयों को विष समझें ।
अपने मन पर करें नियन्त्रण ,हम विवेक पौरुष समझें।
पराशक्ति कहती अपरा से मुस्काती जाते- जाते ।
हम परहितार्थ या जनहितार्थ ये वातायन खोल गये ।।१!

शेष रहा जो उसे सम्भालो ,सॉसोंमें चंदन महके ।
भूल अतीत ,भविष्य सँवारों ,खुशियोंसे जीवन चहके।
बने वृक्ष- वट जीवन ऐसा छाया को देने वाला ।
सुरभि भरीभरी मारुत बतियाये, पल्लव- पल्लव डोल गये।।२!!

—- जितेन्द्र कमल आनंद

Language: Hindi
Tag: गीत
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