बचालों यारों…. पर्यावरण..

धरा हैं मुझको प्यारी प्यारी
मैं करता हूँ उसकी रखवाली
हवामें छुपकर
प्रकृति की करु छेड़खानी
मौसम बदलकर
लाऊ खिंच बरखारानी..!
जीवसृष्टि और…..
पेड़पौधों को देता हरयाली..!!
मैं हु ऐसा लुप्त पर…
मेरे बिना सुनी हैं धरती…!.!..!
देता हूँ अनमोल उपहार
अन्न, हवा, पानी..!!
जानते हो.. मैं हूँ मौजूद
यहां-वहां तुझमें भी..!
मेरी धरोहर हैं वसुंधरा में,
खिली.. ओर.. फैली..!
रक्षा करो मेरी संपत्ति की,
देता हूँ सीख यहीं..!
करो न छेड़खानी मुझ संग,
रुठ जाऊँगा कहीं…!
फिर.. कैसे जी पाओंगे….
सांस नहीं ले पाओंगे…!!
मैं हूँ वातावरण…. कर्ता हूँ अरज
बचालों यारों…. पर्यावरण…!!!!