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2 May 2020 · 1 min read

-: { बचपन } :-

हर चिंतन से परे था बचपन,
आज हर पल हैं खौफ़ से भरा ,,

हर चेहरे कभी लगते थे अपने,
आज अपनो से भी है डरा ,,

आज उस खेल से भी हुआ परिचय ,
मेरे नन्हे पॉव से है लहू टपक रहा ,,

नही भाता हैं मुझे अब कहीं भी जाना,
कभी खेलती थी जहाँ, वहां आज राक्षस है खड़ा,,

क्या पता था मुझे, गुड़ और बैड टच ,
मेरे बचपन को क्यों इन ,अंधेरे मे हैं धकेल रहा,,

नही हैं इसमे मेरी कोई गलती ,
दुनिया सुंदर है , हर किताब मुझे यही सीखा रहा ,,

क्यों मेरे नन्हे मन की कोमल पंखुड़ियां ,
अपनी कुदृष्टि से वो शैतान कुचल रहा ,,

माँ की गोद में ही , क्यों मेरा मनोबल,
अपनी हवस के खेल में है तोड़ रहा ,,

नही पता ये चीज है , कैसे सब को बताऊ मैं ,
क्यों ये ज़माना सारा मेरी फ्रॉक को, साड़ी से है
बांध रहा,,

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 3 Comments · 314 Views
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