बचपन में थे सवा शेर

बचपन में थे सवा शेर जो
यौवन आते वो शेर हो गए
सच्चाई ये शेरों की सुनिए
शादी होते सब ढ़ेर हो गए
बचपन में थे………
जाने कैसा जीवन आया
भूले अपना और पराया
बीबी के आधीन हो गए
भूले हैं अपना मन भाया
माँ के लिए बादाम थे जो
अब वही बेरी बेर हो गए
बचपन में धे………
कलियों सा था ये बचपन
फूलों के जैसा था बचपन
आज सभी हैं यूँ मुरझाए
ज्यूँ पतझड़ में पेड़ लताएं
पहले जो थे गुलाब कभी
वो सुखी हुई कनेर हो गए
बचपन में थे……….
जीवन की कड़वी सच्चाई
“विनोद”रह गई है परझाई
बचपन यौवन कहीं नहीं है
मैं तुम हम वे कहीं नहीं हैं
जिम्मेदारियाँ ऐसी हो गई
जो थे कभी दलेर खो गए
बचपन में थे……….
…………………(अनंत)
स्वरचित:-विनोद चौहान