“तुझमें कहीं”…
तुझमें कहीं मैं अपना बचपन ढूंढ लेती हूं,
वह निश्चल बातें, वह यादें याद कर लेती हूं।
पास आकर खेलना, यू मचलना तेरा
कुछ देर तुझे ना देखूं तो तड़प उठती,
संग तेरे दुनिया भूल जाती हूं।
लगता है जैसे मां का आंचल, पिता का प्यार, भाई- बहन का लाड पा लेती हूं।
अपनी नादानीयां फिर याद कर लेती हूं।
तुझमें कहीं मैं अपना बचपन ढूंढ लेती हूं…
मुझको परेशान करती कभी शरारते तेरी,
डांटकर तुझे खुद रोती किसी कोने में।
मुस्कुरा कर फिर गले लगाना तेरा।
अपनी बेफिक्री फिर याद कर लेती हूं
तुझमें कहीं मैं अपना बचपन ढूंढ लेती हूं…
कभी मासूमियत की मूर्ति, तो कभी बदमाशी की पुड़िया है,
तेरी बदमाशियां भी मासूमियत से भरी रहती।
सब कहते जब तेरा बेटा तेरे जैसा ही है तब तू कहता हां तो मैं मम्मा का बेटा हूं ना।
जब पूछती तू इत्ता प्यारा क्यों है? कहता क्योंकि आप बहुत प्यारी हो।
अपनी शरारते फिर याद कर लेती हूं,
तुझ में कहीं मैं अपना बचपन ढूंढ लेती हूं…
खाने का शौकीन है बड़ा ही गोलू मोलू तू,
जब पेट हिलाते चलता है,
बड़ा ही नटखट लगता तू। गलती कर छिप जाता किसी कोने में फिर आके माफ़ी मांगता तू।
अपनी शैतानीयां फिर याद कर लेती हूं।
तुझमें कहीं मैं अपना बचपन ढूंढ लेती हूं…
दूसरो की बातों से जब भी दुखी होती ,
गले लगा, आंसू पोंछ कर कहता मम्मा tension मत लो ..मैं हूं ना।
मेरे हर सुख दुख का साथी तू।
तुझ में कहीं मैं अपना बचपन ढूंढ लेती हूं..
वह निश्चल बातें, कुछ धुंधली यादें याद कर फिर से समेट लेती हूं।