बचपन, जवानी, बुढ़ापा (तीन मुक्तक)

बचपन, जवानी, बुढ़ापा (तीन मुक्तक)
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बचपन (मुक्तक)
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उमर के दौर में सबसे, मजे का दौर बचपन है
न जिम्मेदारियाँ कोई, उछलता-कूदता मन है
कहॉं है ऐसी बेफिक्री, कहाँ इस दौर की मस्ती
न पक्की दोस्ती कोई ,न पक्का कोई दुश्मन है
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जवानी (मुक्तक)
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जवानी से जो पूछो हाल, तो इठलाएगी पहले
ठहाका मारना जोरों से, वह बतलाएगी पहले
जवानी ने कहाँ देखा, बुढ़ापा-मौत को अब तक
अगर सोचा जरा भी तो, बहुत घबराएगी पहले
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बुढ़ापा (मुक्तक)
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लिखी किस्मत बुढ़ापे की, बहुत ही क्रूर होती है
जवानी वाली मस्ती और, फुर्ती दूर होती है
तरस खा-खा के मिलती है, मदद जो मौत से बदतर
कराहती-साँस ढोने को, बदन मजबूर होती है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451