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1 Jul 2023 · 1 min read

फितरत दुनिया की…

ये तो दुनिया की फितरत है।
अपना कहती फिर छलती है।
बाहर- बाहर मीठी बातें,
पर भीतर चालें चलती है।

किए बड़े थे उसने वादे।
मगर नहीं थे नेक इरादे।
झूठ खुला तो जाना, कैसे-
चतुराई रूप बदलती है।

मृदु बोली में विष की गोली।
नज़र बचाकर उसने घोली।
भाँप न पाया दिल ये मेरा,
इसमें मेरी क्या गलती है ?

दिल पर जो छुपछुप घात करे।
छल से आहत ज़ज्बात करे।
वाकिफ़ रहे सदा इस सच से,
आह भी एक दिन फलती है।

नभ में सूरज- चाँद-सितारे।
आते – जाते बारी – बारी।
दिन भी सदा न सबका रहता,
रात भी सभी की ढलती है।

कभी किसी की रातें लम्बी।
कभी किसी के दिन बढ़ जाते।
भाग बराबर मिलता सबको,
समता से दुनिया चलती है।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

8 Likes · 2 Comments · 229 Views
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