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4 Mar 2024 · 1 min read

फागुन (मतगयंद सवैया छंद)

फागुन
कोयल कूक रही बगिया नव पल्लव डंठल पादप पाये।
मोजर से अमुवा लदके भँवरा कलिका लखि के पगलाये।
पीत पुनीत खिली सरसों अरु मादकता महुँआ छलकाये।
फागुन मोह रहा मन को मदमस्त छटा हिय को ललचाये।।

झूमत नाचत गात सखी मन ढोलक झाल मृदंग बजाये।
मादकता दृग से छलके जब मन्द सुगन्ध बयार लुभाये।
रंग अबीर उड़े नभ में जब भूप बसंत धरा पर आये।
फागुन फाग सुहावन राग छटा छवि देख हिया हरसाये।।

✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’

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