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28 Jul 2016 · 1 min read

प्रेम

मुक्तक
भेद नहीं कुछ प्रेम में, है तो बस अनुराग।
मूर्ति हृदय प्रिय की बसे, और असीमित त्याग।
प्रेम विवश जगदीश भी, लगा सजाने केश।
क्रिया भले ही तुच्छ हो, मगर नहीं है दाग।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.

Language: Hindi
506 Views
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Books from अंकित शर्मा 'इषुप्रिय'
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