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28 Sep 2024 · 1 min read

प्रेम की मर्यादा

प्रेम में मर्यादा सोहे
न सोहे है वासना
मन नियंत्रित न रहे
उपजे दूषित भावना

आँखों में है रोग रोहे
पलकों पर दुर्भावना
दृष्टि पावन न रहे तो
ओझिल हो संभावना

आचरण जो मन को मोहे
न मोहे है थापना
शिष्ट यदि बर्ताव न हो
हठ भला क्या पालना

मान–गौरव को है टोहे
न टोहे है लाँछना
यश प्रशंसित तब रहे
हो प्रतिष्ठित धारना

प्रीत–प्रीतम को है जोहे
जोहती बन साधना
तन निमंत्रित तब करे
बँधती बंधन कामना

लाज घूँघट को है ढो़ए
शर्म ढो़ए सामना
रूप खुलकर है निखरता
सामने जब साजना

–कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
★स्वरचित रचना
★©️®️सर्वाधिकार सुरक्षित

2 Likes · 2 Comments · 169 Views
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