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19 Aug 2021 · 1 min read

प्रिय मिलन की आस

शान्त कोमल नीरवता
सन्नाटे भरी गर्जन में
जब वृक्ष के पात भी
किसी अनजान दहशत में

न जाने कोन सी घड़ी
गुमसुम क्यों बैठी सजनी
पिया मिलन की आस है
या न जाने कोन प्यास

अति अकुलायी आतुर
अपलक टेरती बाट को
ज्यों कोई हो आने वाला
उदास जैसे कोई बात हो

अविरल अनोखा सूनापन है
लगता प्रकृति का कोई टोना
न ले जाता प्रियतम को दूर
जैसे बादल से हो बारिश दूर

काल सर्प सी डसती रातें
जगा देती वो प्यारी यादें
प्रियतम गया परदेश को
तभी छोड़ बैठी हूँ मैं प्यास

प्रिय मन बसा है कहीं ओर
अटका किसी ओर तरूणी में
जिसने किया हिय तार तार
तभी बनी हूँ मैं आज पाषाण

पाषाण खण्ड से बदतर है
जो दिल उलझा कुलच्छनी में
मृगनयनी काम सुधा छोड़
झटका है दुष्ट सोतन में

डॉ मधु त्रिवेदी

Language: Hindi
Tag: कविता
77 Likes · 475 Views

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