प्रथम जागृत थी
काली छायी टूट पड़ी नभमण्डल काया में
ललकार नही, जयकार नहीं वों ऊर्ध्वङ्ग तस्वीर
चन्द्रहास को न पूँछ उसमें भी शङ्खनाद नहीं
चेतना की लहर किसका पङ्क्ति की आवाज
पिञ्जरबद्ध विहग आँगन के शप्त शय्या प्रतीर
कल सहर भी लौट चला विरक्त तिमिर सर में
तरुवर छाँह कराह के अशक्त निहत निर्वाद
निवृति ईप्सा अकिञ्चन भी नहीं आयत्ति गात
क्रान्ति व्यूह की प्रथम जागृत उबाल मिट्टी तन में
यह शहादत मंगल की बगावत बारूद चिङ्गार
रणभेरी यह रण थी दीन वनिता उत्पीड़न के भव
कमान सर से चूक पर रक्तरञ्जित कुञ्चित धरा
आमद यती प्रस्फुटित प्रभा पुष्प पुञ्ज कलित रण के
उपेन्द्र धार प्रवाह हृदय चित्त में विलीन मयूख
स्वप्निल स्वच्छन्द स्पन्दन से पन्थ कबसे नव्य अरुण के
इतिवृत्त पन्नग – सी त्याग शिशिर अम्बुद में मीन वसन्त
चिर विछोह तरङ्गित उर में स्वत्व वतन व्योम असीम
यह उपवन अभेद नीहार अजेय विस्तीर्ण भव केतन ऊर्ध्वङ्ग
बहुरि द्विज उद्भिज हूँ चिरायँध से स्वः सृष्टा गुर के
आर्द्र चितवन अमन के स्वच्छन्द विहग पङ्ख उड़ान के चला