प्रकाशित हो मिल गया, स्वाधीनता के घाम से

शुभ सुहिंदुस्तान हूँ, देखो मुझे आराम से ।
गुलामीं के निशाँ, दर्दीले-जवाँ पैगाम से ।
घाव गहरे दिए पर, मुस्कान का आलोक गह
प्रकाशित हो मिल गया, स्वाधीनता के घाम से।
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बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता