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29 Aug 2022 · 6 min read

*पुस्तक/ पत्रिका समीक्षा*

*पुस्तक/ पत्रिका समीक्षा*
*पत्रिका का नाम : अध्यात्म ज्योति*
अंक 2, वर्ष 55, मई-अगस्त 2022
*संपादिका : (1) श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत*
61 टैगोर टाउन, इलाहाबाद- 211002
फोन 99369 17406
*(2) डॉ सुषमा श्रीवास्तव*
f-9, सी-ब्लॉक, तुल्सियानी एंक्लेव, 28 लाउदर रोड, इलाहाबाद-211002
फोन 94518 43915
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*समीक्षक :रवि प्रकाश*
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
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*स्वतंत्रता आंदोलन में थियोसॉफिकल सोसायटी का योगदान*
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‘अध्यात्म ज्योति’ पत्रिका ने आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर अगस्त 2022 में प्रकाशित अपना अंक स्वतंत्रता दिवस विशेषांक के रूप में निकाला है और इस विशेषांक में इस बात को रेखांकित किया गया है कि भारत की स्वतंत्रता में थियोसोफिकल सोसायटी का योगदान किस प्रकार से रहा था।
वास्तव में देखा जाए तो अध्यात्म और राजनीति कभी भी भारत के चिंतन से दो अलग-अलग दृष्टिकोण नहीं रहे। यहॉं राजनीति का अर्थ सत्ता-प्राप्ति के लिए किए जाने वाले जोड़-तोड़ से नहीं है तथा अध्यात्म का अर्थ भी अंधविश्वास, पाखंड और कुरीतियों के चंगुल में फॅंसा हुआ धार्मिक व्यवहार भी नहीं है । हम तो उस अध्यात्म की बात कर रहे हैं, जिसका साफ-सुथरा, सुलझा हुआ और वैज्ञानिकता से ओतप्रोत स्वरूप थियोसॉफिकल सोसायटी में मिलता है । राजनीति भी व्यापक राष्ट्रीय समर्पण के भाव से हम प्रयोग कर रहे हैं । स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में जितने लोग राजनीति में आए, वह सर्वस्व-समर्पण के भाव से आंदोलनों में सक्रिय रहे । कष्ट सहा, जेल गए, यहॉं तक कि प्राण-उत्सर्ग भी किया । साथ ही साथ थियोसॉफिकल सोसायटी के कार्यों में भी संलग्न रहे। बौद्धिक चेतना को जागृत किया और उस अमृत-तत्व की प्राप्ति के लिए भी प्रयत्नशील रहे जो मनुष्य जीवन का वास्तविक उद्देश्य होता है । ऐसे अध्यात्म और राजनीति के सुंदर मेल ने जहॉं एक ओर थियोसॉफिकल सोसायटी को भारत की राष्ट्रीय चेतना की वाहक संस्था बना दिया, वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता आंदोलन को थियोसॉफिकल सोसायटी की तेजस्विता से विभूषित महान व्यक्तित्वों के नेतृत्व से आभामंडित भी किया।
1880 में जब थियोसॉफिकल सोसायटी के संस्थापक कर्नल ऑलकॉट और मैडम ब्लैवेट्स्की काशी नरेश से मिलने उनके राज महल पहुंचे, तो प्रवेश-द्वार पर ‘ *सत्यान्नास्ति परोधर्म:* ‘ -यह लिखा हुआ उन्हें इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे थियोसॉफिकल सोसायटी के चिन्ह में शामिल कर लिया। इसका अर्थ है कि सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता । (प्रष्ठ 33, विमल कुमार वर्मा, रामनगर, बनारस)
29 नवंबर 1879 को *मुंबई में ‘स्वदेशी प्रदर्शनी’* का आयोजन थियोसॉफिकल सोसायटी के संस्थापकों कर्नल ऑलकॉट और मैडम ब्लैवेट्स्की के नेतृत्व में हुआ। इसने भारत में भारतीयत्व की भावना को जगाने का बड़ा काम किया । इससे भी बढ़कर 5 दिसंबर 1879 को ‘थियोसॉफिकल सोसायटी और इसका भारत से संबंध’ – विषय पर इलाहाबाद के मेयो हॉल में थियोसोफिकल सोसायटी की सभा हुई। इसकी अध्यक्षता श्री *ए.ओ.ह्यूम* ने की थी, जो बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1885 में संस्थापक बने । इलाहाबाद में थियोसॉफिकल सोसायटी की जनसभा में पंडित मोतीलाल नेहरू और पंडित सुंदरलाल सदृश्य स्वतंत्रता आंदोलन की तपी-तपाई विभूतियॉं
उपस्थित रही थीं। ज्ञान कुमारी अजीत के शब्दों में ” थियोसॉफिकल सोसायटी कन्वेंशन के बाद ए.ओ.ह्यूम की अध्यक्षता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की रूपरेखा अड्यार के सुप्रसिद्ध बरगद वृक्ष के नीचे बनाई गई”। इस तरह भारत की आजादी के सर्वाधिक मुखर संगठन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और थियोसॉफिकल सोसायटी का गहरा संबंध स्थापित हुआ ।(प्रष्ठ 12-13, ज्ञान कुमारी अजीत)
ए. ओ. ह्यूम कांग्रेस के संस्थापक होने के साथ-साथ थियोसॉफिकल सोसायटी के अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे । (प्रष्ठ 9, डॉ श्याम विद्यार्थी, अवकाश प्राप्त निदेशक, दूरदर्शन, इलाहाबाद)
थियोसॉफिकल सोसायटी की गतिविधियों का भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से गहरे संबंधों का प्रमाण इससे अधिक भला क्या होगा कि *12 अगस्त 1903* को इलाहाबाद में *मोतीलाल नेहरू* के निवास स्थान *’आनंद भवन’* में थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना हुई थी, जिसमें मोतीलाल नेहरू अध्यक्ष बने और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर परम विद्वान *पंडित गंगानाथ झा* ने थियोसॉफिकल सोसायटी के उपाध्यक्ष पद को सुशोभित किया। इस तरह आनंद भवन जहॉं एक और स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र बना, वहीं दूसरी ओर यह थियोसॉफिकल सोसायटी की गतिविधियों का हृदय-स्थल भी बन गया । (प्रष्ठ 31, श्रीमती राशी काक)
मैडम ब्लैवेट्स्की के बाद थियोसॉफिकल सोसायटी में सर्वाधिक ओजस्वी नेतृत्व *एनी बेसेंट* का रहा । जहॉं एक ओर आपने थियोसॉफिकल सोसायटी को दिशा दी, वहीं दूसरी ओर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में गहरी दिलचस्पी दिखाई । 1916 में अड्यार से आपने कांग्रेस के भीतर से ‘होमरूल लीग आंदोलन’ शुरू कर दिया । भारत की स्वतंत्रता के लिए चलाए जाने वाले इस आंदोलन के कारण आपको आर्थिक दंड और नजरबंदी के साथ-साथ जेल-यात्रा भी करनी पड़ी। 1917 में आपका कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के पद को सुशोभित किया जाना स्वतंत्रता आंदोलन में थियोसॉफिकल सोसायटी के योगदान का एक गौरवशाली प्रष्ठ है।(प्रष्ठ 17, प्रोफेसर गीता देवी)
पत्रिका में उन स्वतंत्रता सेनानियों का उल्लेख है, जो थियोसॉफिकल सोसायटी के साथ अत्यंत सक्रिय रूप से जुड़े रहे । *डॉक्टर भगवान दास* उनमें से एक थे । आप स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी सेनानी थे। गांधी जी के पद चिन्हों पर चलकर असहयोग आंदोलन में शामिल हुए । आई. सी. एस. के अत्यंत प्रतिष्ठित पद से आपने देशभक्ति की भावना से त्यागपत्र दिया था । आजादी के बाद आप को ‘भारत रत्न’ से सुशोभित किया गया । आप थियोसॉफिकल सोसायटी की बनारस लॉज ‘काशी तत्व सभा’ के संस्थापक थे। एनी बेसेंट के साथ मिलकर थियोसॉफिकल सोसायटी के लिए आपने बड़ा काम किया था । अंबर कुमार के शब्दों में “1899 से 1914 तक ऑनरेरी सेक्रेटरी के रूप में थियोसॉफिकल सोसायटी की सेवा की।” (प्रष्ठ 19-20, अंबर कुमार)
*डॉ. जार्ज सिडनी अरुंडेल* थियोसॉफिकल सोसायटी के तृतीय अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष थे । यह एनी बेसेंट के सहयोगी के रुप में आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे, जेल-यात्रा की नजरबंद भी हुए । आप होमरूल-आंदोलन के अखिल भारतीय संगठन मंत्री भी रहे । यह आंदोलन एनी बेसेंट ने शुरू किया था, जो स्वयं थियोसॉफिकल सोसायटी की सर्वोच्च पदाधिकारी थीं। (पृष्ठ 21, सुदीप कुमार मिश्रा)
डॉक्टर भगवान दास के पुत्र *श्री प्रकाश जी* जहॉं एक ओर थियोसॉफिकल सोसायटी के सदस्य रहे, थियोसॉफिकल सोसायटी में सक्रिय योगदान दिया, वहीं दूसरी ओर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान जेल भी गए थे । स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई थी । (पृष्ठ 23 सुदीप कुमार मिश्रा)
*रोहित मेहता* जहॉं एक ओर थियोसॉफिकल सोसायटी की भारतीय शाखा के महासचिव रहे, वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करते हुए जेल गए थे । पुलिस के प्रहार से आपके हाथ में गहरी चोट भी आई थी । इस तरह आजादी की लड़ाई और थियोसॉफिकल सोसायटी की गतिविधियों में हिस्सेदारी -यह दोनों काम रोहित मेहता के रहे।( पृष्ठ 23, सुदीप कुमार मिश्रा)
*देवानंद गौड़* जहॉं एक ओर सन 42 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रहे, जेल यात्रा की, वहीं दूसरी ओर थियोसॉफिकल सोसायटी के भी सदस्य थे । *अच्युत पटवर्धन* भी महात्मा गांधी के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ और ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ के अग्रणी सिपाही थे । साथ ही साथ आप जे. कृष्णमूर्ति के विचारों के अनुयाई भी थे तथा ‘कृष्णमूर्ति फाउंडेशन’ से हमेशा जुड़े रहे। (पृष्ठ 24, सुदीप कुमार मिश्रा)
*ब्रजनंदन प्रसाद* उन साहसिक व्यक्तियों में से थे जिन्होंने सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय बनारस की कचहरी पर चढ़कर तिरंगा फहराया था । उनकी सुपुत्री डॉ. माधुरी सरन ने अपने संस्मरण बताते हुए लिखा है:- “थियोसॉफिकल सोसायटी, वाराणसी में बिताए हुए दिनों की आज भी याद आती है । वहॉं का विशेष वातावरण कुछ अलग ही था । मेरे पिता ब्रजनंदन प्रसाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र थे । उन्हें पंडित मदन मोहन मालवीय ने स्कॉलरशिप दिया था। वह खेलकूद में आगे बहादुर छात्र थे । सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया । बनारस की कचहरी पर चढ़कर उन्होंने तिरंगा फहराया था यूनियन जैक उतारकर तिरंगा फहराना बहुत साहस का काम था। जब छात्रों को खदेड़ा गया तो कमच्छा की ओर भागते हुए थियोसॉफिकल सोसायटी के फाटक पर चढ़कर अंदर कूद गए । थियोसॉफिकल सोसायटी के जनरल सेक्रेटरी डॉ. अग्रवाल भी पिताजी के साथ विश्वविद्यालय में पढ़े थे । उन्होंने भी इस घटना की चर्चा की थी। (पृष्ठ 27-28 डॉ माधुरी सरन, अमेरिका)
थियोसॉफिकल सोसायटी के सदस्य स्वतंत्रता आंदोलन में सिर्फ हिस्सेदारी ही नहीं निभा रहे थे, वह इस आंदोलन का इतिहास लिखने के लिए भी सजग थे। इलाहाबाद आनंद लॉज के अजीत कुमार एडवोकेट ऐसे ही धुन के पक्के थे । आपने खोज की और पाया कि इलाहाबाद के एक क्रांतिकारी *मौलवी लियाकत अली* ने किस तरह आजादी की लड़ाई के लिए संघर्ष किया, उनको काले पानी की सजा हुई और फॉंसी दे दी गई। लियाकत अली का नाम शायद इतिहास के धुंध और धूल में कहीं खो जाता लेकिन अजीत कुमार ने देशभक्त लियाकत अली के गॉंव जाकर उनके घर का पता लगाया, उनका वस्त्र उनके वंशजों से लेकर आए, जो आज भी इलाहाबाद के संग्रहालय में देखा जा सकता है। उनके वंशजों को सरकार से आर्थिक सहयोग दिया जाने लगा।( प्रष्ठ 36-37 श्रीमती अजंता, नोएडा)
इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन में थियोसॉफिकल सोसायटी का योगदान सामने लाने की दिशा में ‘अध्यात्म ज्योति’ का यह अंक बहुत सार्थक प्रयास है । आजकल स्थान-स्थान पर स्वतंत्रता आंदोलन में जिन लोगों ने योगदान किया है, उनका विशेष स्मरण किया जा रहा है। एक जरूरी राष्ट्रीय भावना को आस्था के साथ जन-जन तक पहुॅंचाने के लिए अध्यात्म ज्योति पत्रिका का संपादक मंडल बधाई का पात्र है । पत्रिका का कवर आकर्षक है।

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