“पिता”

जब आँखें खोली तो… पाया उन्हें,
जब समझ आई तो… पहचाना उन्हें,
रखा जब सिर पर हाथ…….
तब हुआ होंगा एहेसास कुछ खास…!
पर..थे छोटे..शायद…..
तभी…. न महेसूस हुआ कुछ ख़ास…!!
ऊँगली थामी जब चलना सिखाया
अपने कंधे पे बिठाकर सैर कराई…!
बात धीरे धीरे… तब जहन में आई,
ये तो हैं हमारी मौजूदगी का मसीहां
जो हैं फरिश्तों जैसा..!!
हुएँ जब सयाने तब.. आई समझदारी पूरी
सच्चाई का देखा आयना.. रह गएँ दंग तभी..!
अरे….जिसने जीवन अर्पण कर दिएँ कुर्बानी,
आँधीओंमें भी रहती सदा मुँह पर हसीं
वो… तो हैं.. पिता.. महागौरवशाली..!!
औलाद की खैरियत की मांगते रहतें हैं दुआ….
आत्मत्यागी, महायोद्धा, शौर्य गाथा हैं जिनकी विशिष्ट…!
हैं उत्तम फ़ौलादी व्यक्तित्व संसारमें
कहलाता वह पूज्य पिता…!!!!!!
डॉ.अल्पा. एच. अमीन
(अमदाबाद )