‘पिता’ हैं ‘परमेश्वरा……..

घर एक मंदिर, जैसे हो मंदिर में मूर्ति भगवान की
वैसे घरमें हैं प्रत्यक्ष परमेश्वर पिताजी…
जो बिन कहे सुने हमारे ‘मन’ की…!
हैं वो चट्टान स्थिरता की… जो…
कभी नहीं हिलती, हैं उपमा ‘पहाड़ो’ की…!!
गहराई हैं जैसे समुंदर की, समाये कई दर्द,
भावना, स्नेह की ‘धारा’ कई…!
होता हैं दर्द संतान को कभी, वो…
बन जाता जैसे ढ़ाल ‘सुरक्षा’ की…!!
हैं किरदार उनका ‘विधाता’ जैसा,
वो सँवारता ‘किश्मत’ संतानों की….!
विशालता हैं जैसे हो ‘अंबर’ की,
परिवार के हर एक पहलु की
करता परवाह हरधड़ी…..
देता छत्रछाया ‘सुख’ और ‘दुःख’ में कई…!!
सहनशीलता का हैं वो तो ‘बादशाह’
जैसे हैं ‘वसुंधरा’ की धीरता..!
कई कष्टों का दमन अपने भीतर ही दबा देता,
फिर… भी कभी न आँखोंमें बहती धारा आंसू की…!!
मनोबल हैं ‘पंछी’ की तरह हर हाल में ‘मंजिल’ को छुता
सपना औलाद का… हांसिल वो करवाता….!
बुलंद ‘हौंसला’ हैं रखता… उम्मीदों को सजाकर
जीवन की गुणवत्ता समझाता..!!
खुद को ‘न्यौछावर’ कर, संतान की ‘हसरतों’ को
सचमें उच्चता के शिखरो की ‘सैर’ कराता…!!
रहे सलामत करें हम दुआ हैं रब से यही “प्रार्थना”……..
पिता’ हैं ‘परमेश्वरा’…. ‘नमन’ आपकी ‘कुर्बानी’
और… ‘संधर्ष’ को सदा…!!!
डॉ. अल्पा. एच. अमीन
गुजरात (अमदाबाद )