पिता के जैसा……नहीं देखा मैंने दुजा

पिता के जैसा…नहीं देखा मैंने दुजा
हैं मन का बड़ा पक्का… न समझो कभी कच्चा
औलाद की उम्मीद को हकिकत में बदलता…!!
संघर्ष की हैं ऐ मजबूत कड़ी
साहसिकता की अमूर्त मूर्ति
आये आंधी या आये पहाड़ो सी नौबत
न कभी हारा न कभी भुला फर्ज़ को अपने
सीने से लगाकर जीत को दर्ज किया…!!
ह्रदय हैं कमाल परिवार का हैं आधार
दर्द का सागर.. संतान की हंसी, संतान की ख़ुशी
हैं यही निस्वार्थ भावना पिता की सदा….!!
जवाबदारी सम्पूर्ण अदा करे
न मुकरें अपने कर्तव्य करम से कभी…
दुआ करों… न कभी ऐसा कोई संजोग बने..
संतान के माथे से उनका साया हटे…
पर…. अगर ऐसी करुणा सजे तो…..!..!..!
वो….. जीवन पर्याप्त न कोई दुःख संतान को छुऐ
ऐसी व्यवस्था का आयोजन पहले से
कर दुनिया को ‘अलविदा’ कहे…!!!!!!
डॉ. अल्पा. एच. अमीन
(अमदाबाद )