पिचकारी 【कुंडलिया】
पिचकारी 【कुंडलिया】
★★★★★★★★★★★★★★★
पिचकारी जितनी भरी ,उतनी छोड़े रंग
धार किसी की दूर तक ,रह जाते सब दंग
रह जाते सब दंग , किसी ने गाढ़ा पोता
रहता रंग अनूप , न हल्का किंचित होता
कहते रवि कविराय ,खेल लो होली प्यारी
दो दिन का त्यौहार ,रंग दो दिन पिचकारी
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451