*पारखी नजरों में जब, आतीं पुरानी पुस्तकें (हिंदी गजल/ गीतिका
पारखी नजरों में जब, आतीं पुरानी पुस्तकें (हिंदी गजल/ गीतिका)
—————————————-
1
पारखी नजरों में जब, आतीं पुरानी पुस्तकें
अनमोल तब सर्वत्र, कहलातीं पुरानी पुस्तकें
2
संदूक से जब भी निकाला, अधफटे कुछ पृष्ठ थे
पर चमक ऑंखों में भर, लातीं पुरानी पुस्तकें
3
इनको दया की भीख कब, चाहिए बाजार में
एक सिक्के-सी खरी, छातीं पुरानी पुस्तकें
4
एक नूतन संस्करण, बाजार में जब आ गया
ज्यों पहन कपड़े नए, गातीं पुरानी पुस्तकें
5
अनपढ़ों तक कब विरासत, लेखकों की रह सकी
भाव में रद्दी के बिक, जातीं पुरानी पुस्तकें
—————————————-
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451