*** ” पापा जी उन्हें भी कुछ समझाओ न…! ” ***

*** कई बार कही है मैंने पापा से..
उन्हें भी कुछ समझाओ न ,
जिनकी निगाहों में , एक बोझ हूँ मैं..!
जिनके विचारों में अपयश की.. ,
एक किस्सा हूँ मैं..!
उनके अनर्गल बातों को झुठला दो न..
समाज की एक अहम् हिस्सा भी हूँ मैं..!!
उन्हें कुछ कह दो न …
घर की दहलीज ही , मेरी सीमा नहीं ।
चूल्हा-चौकी तक ही , मेरी दुनिया नहीं ।
सभ्यता के विकास में….,
मैं भी , एक अहम् कड़ी हूँ ।
खुशियों की आंगन में….,
महकती मै , एक लड़ी हूँ ।
*** मैं भी उसी रक्त का एक हिस्सा हूँ…,
जिस पर आज , है तूझे नाज़-अभिमान ।
रक्त का रंग तो एक है…,
फिर मतभेदों की पथ बना…
ओ क्यों करता है , मेरी अपमान ।
मैं भी उसी समाज का एक भाग हूँ….,
जिस पर है तेरे अहमियत् की गौरव- गुणगान ।
तेरे धर्म-दर्शन और…
संस्कृति-समाज के निर्माण में….,
वैज्ञानिक-खोज-आविष्कार में….,
मेरी भी है एक ,अहम् योगदान ।
फिर मेरे नाम की पुकार में….,
मेरे सपनों की उड़ान में …,
क्यों लग जाता है पूर्ण विराम ।
फिर .. मेरे नाम से..,
क्यों होना पड़ता है तूझे अपमान..,
क्यों लगता है मुझ पर ही , सारे इल्ज़ाम ।
मैं भी चाहता के आसमान में..,
उड़ता एक पंछी हूँ ।
पापा जी उन्हें भी कुछ समझाओ न…! ,
मेरी परवाज़ , आज तुम बन जाओ न…!
मेरे विचार..,
मेरी भावनाओं को….!
एक रुप….,
एक अमिट आकार दे जाओ न…!
मेरे नाम के एक पेड़ लगाओ न…!
जिसमें…,
मेरी अरमानों के फूल खिले…!
मेरे नाम से भी तूझे…!
एक नई पहचान मिले….!!
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** बी पी पटेल **
बिलासपुर ( छ . ग . )