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20 Aug 2016 · 1 min read

पर खुशियों की बात नहीं है…….

गज़ल

ग़म का तो अब साथ नहीं है,
पर खुशियों की बात नहीं है।

प्यार वही है पहले जैसा,
लेकिन वो जज़्बात नहीं है।

कितनी रातें रोई शबनम,
यह कोई बरसात नहीं है।

कट जाती है जैसे तैसे,
पर दौलत इफरात नहीं है।

दोस्त नहीं हैं पहले जैसे,
पर दुश्मन सी घात नहीं है।

मुद्दों पर कुछ बात उठी है,
यह झगडा बे-बात नहीं है।

तुम जैसों को टक्कर देना,
सबके बस की बात नही है।

-आर० सी०शर्मा “आरसी”

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