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24 Aug 2019 · 1 min read

परिवर्तन

परिवर्तन

मन के द्वार
देती हैं दस्तक
बार-बार
गमी व खुशी
चिन्ता व बेफिक्री
कभी हो जाता है
मन भारी
मानो पड़ा है इस पर
कई मण भार
कभी हो जाता है
फूल के माफिक
हल्का-फुल्का
तरो-ताजा
बदलती रहती है
मनोस्थिति
हुआ प्रतीत
कुछ भी नहीं है स्थाई
जीवन में
परिवर्तन है
प्रकृति का
अभिन्न अंग

-विनोद सिल्ला©

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 160 Views
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