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8 Nov 2022 · 1 min read

परिन्दे धुआं से डरते हैं

वो जो लंबी उड़ान भरते हैं
वो ज़मीं पर कहां ठहरते हैं

जो समझते हैं आग की ताक़त
वो परिन्दे धुआं से डरते हैं

सोचकर फूल तोड़ना इनके
पेड़ पौधे हिसाब करते हैं

कुछ फ़सादी इसी में ख़ुश हैं
रोज़ जीते हैं रोज़ मरते हैं

-शिवकुमार बिलगरामी

क्या सितम है कि अब फ़रिश्ते भी
आसमानों से कम उतरते हैं

Language: Hindi
Tag: ग़ज़ल
3 Likes · 91 Views
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