Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Jan 2023 · 5 min read

*पद्म विभूषण स्वर्गीय गुलाम मुस्तफा खान साहब से दो मुलाकातें*

*पद्म विभूषण स्वर्गीय गुलाम मुस्तफा खान साहब से दो मुलाकातें*
_______________________________________
3 फरवरी 2007 ..यह जाड़ों की एक खुशनुमा दोपहर थी । मैं अपनी दुकान पर बाजार सर्राफा में बैठा था । अकस्मात एक आकर्षक व्यक्तित्व अचकन पहने हुए मेरी दुकान पर पधारे । उनके हाव-भाव में सम्मोहन की शक्ति थी और मैं अनायास ही उनकी तरफ खिंचता चला गया । दुकान पर उन दिनों दरी – चाँदनी बिछती थी । पालथी मारकर बैठने का रिवाज था । चबूतरे पर जहाँ मैं बैठा हुआ था , उसी के पास मैंने उन सज्जन को भी बैठने का निमंत्रण दिया । वह जमीन पर पैर टिकाकर दुकान पर बैठ गए । उनके साथ शायद एक-दो व्यक्ति और भी रहे होंगे ,जिनकी आयु उनसे काफी कम थी । परिचय हुआ। उनके साथ के व्यक्तियों ने बताया कि आप पद्म पुरस्कार से सम्मानित हैं । रामपुर संगीत घराने से संबंध है तथा मुंबई में रहते हैं। पद्म पुरस्कार की बात सुनकर मैं और भी ज्यादा प्रभावित हो गया ।
पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ की मृत्यु 26 दिसंबर 2006 को हुई थी और एक महीना ही उनकी मृत्यु को हो पाया था। ज्ञात हुआ कि यह महान व्यक्तित्व गुलाम मुस्तफा खान साहब का है जिनकी शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक अनूठी पहचान है। गुलाम मुस्तफा खान साहब ने पिताजी की स्मृति में जैसा कि शोक प्रकट उन्हें करना चाहिए था अपने विचार मेरे सामने रखे और फिर उसके बाद वह चले गए । मैंने उनका नाम ,पद्म पुरस्कार का अलंकरण तथा दुकान पर पधारने की तिथि 3 फरवरी 2007 अपनी फाइल में एक कागज पर नोट कर के रख ली । इससे ज्यादा मैं और कर भी क्या सकता था ! बात आई – गई हो गई। मैं उनके आगमन को भूल गया ।
~~~~~~~~~~~
तीन वर्ष बाद
~~~~~~~~~~~
3 वर्ष बाद 4 जनवरी 2010 को गुलाम मुस्तफा खान साहब पुनः मेरी दुकान पर पधारे । इस बार वह मुझसे ही मिलने आए थे । बैठे और पिछली बार की तरह ही सादगी के साथ उनके व्यक्तित्व का परिचय थोड़ा खुल कर सामने आने लगा ।
” हमारी नजर में संगीत ही पूजा होती है और हम उसमें ही डूब कर सब कुछ पा लेते हैं ।”-गुलाम मुस्तफा खान साहब का कथन था । बातों – बातों में गुलाम मुस्तफा खान साहब ने सर्राफा बाजार से मिस्टन गंज की ओर जाने वाली सड़क की तरफ हाथ से इशारा किया और मुझसे पूछा ” इधर कोई प्रेस भी होती थी और उसमें बहुत सक्रिय एक साहब थे । मैं उनका नाम भूल रहा हूँ।”
मैं समझ गया कि गुलाम मुस्तफा खान साहब किसके बारे में पूछ रहे हैं । मैंने तत्काल काउंटर के भीतर रखी हुई पूज्य पिताजी की जीवनी “निष्काम कर्म” निकाल कर उनके सामने रखी और उसके पिछले आंतरिक कवर पर महेंद्र प्रसाद गुप्त जी तथा पिताजी के गले मिलते हुए का चित्र उनके सामने रख दिया। महेंद्र जी के चित्र पर उंगली रख कर मैंने उनसे पूछा ” आप इन के ही बारे में पूछ रहे थे ? ”
गुलाम मुस्तफा खान साहब खुशी से आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने उस चित्र के नीचे लिखे हुए “समधी” शब्द को पढ़ने के बाद मुझसे पूछा ” इनकी लड़की थी अथवा लड़का ?”
मैंने उत्तर दिया “मैं महेंद्र जी का दामाद हूँ।”- इसके बाद गुलाम मुस्तफा खान साहब की आत्मीयता मेरे साथ और भी बढ़ गई तथा उनका प्रेम दुगना बरसने लगा । जीवनी – पुस्तक मैंने लिखी थी, यह तो उन्हें पता चल ही चुका था । अब उन्होंने मेरे लेखन के बारे में और भी कुछ एक बातें पूछीं। फिर अपनी बातें भी विस्तार से बताईं।
उनकी बहुत सी बातें मुझे अभी भी याद आती हैं । उनका कहना था ” इस्लाम तथा आर्य समाज की विचारधारा में इस दृष्टि से बहुत समानता है कि दोनों ही मूर्ति – पूजा में विश्वास नहीं करते हैं तथा निराकार परमेश्वर की आराधना में उनका विश्वास है । ” उनका कहना था ” धर्म के नाम पर जो झगड़े चल रहे हैं ,उसका मूल कारण नासमझी है तथा जिद पर अड़े रहने वाली बातें हैं । ”
उदाहरण देते हुए उन्होंने मुझे समझाया था ” मान लीजिए ,पानी को हम विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। लेकिन जो पानी का स्वरूप है, वह तो एक ही रहेगा तथा दुनिया में कहीं भी चले जाओ ,किसी भी भाषा में पानी का नाम लो, लेकिन रहेगा तो वह पानी ही । अब जिसने पानी को देख लिया है ,वह समझ जाएगा कि पानी की चर्चा हो रही है और उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि पानी को किस भाषा में अथवा किस नाम के द्वारा पुकारा जा रहा है। जब व्यक्ति मूलभूत सत्य को पहचान लेता है ,तब बाहरी भेदभाव तथा भ्रम समाप्त हो जाते हैं ।”
गुलाम मुस्तफा खान साहब की व्याख्या मुझे पसंद आई थी और उनके स्वभाव में जो उदारता थी ,उसने मुझे प्रभावित किया था । सभी ऊँचे दर्जे के महापुरुष विचारों में लचीलापन रखते हैं तथा उनमें वृहद संदर्भों में मनुष्यता की एकरूपता का भाव विद्यमान रहता है । गुलाम मुस्तफा खान साहब एक ऐसे ही महापुरुष थे । वह बोली में मिठास रखते थे । उन में मधुरता थी। आत्मीयता का गुण कूट – कूट कर भरा था। उनसे मिलना परिवार के एक बुजुर्ग से आशीर्वाद ग्रहण करने जैसा था। वह मुझे मिले ,यह मेरा सौभाग्य था । उनके साथ तीन अन्य व्यक्ति भी आए थे ,जो दुकान पर बैठे नहीं अपितु खड़े रहे थे । उनमें से दो व्यक्ति उनके पुत्र थे तथा तीसरे सज्जन राजद्वारा ,रामपुर निवासी उनके साले थे ।जब गुलाम मुस्तफा खान साहब चले गए तब मैंने उनसे दूसरी मुलाकात की तिथि तथा विवरण अपनी फाइल के पुराने पृष्ठ पर दर्ज कर लिया ।
आज 18 जनवरी 2021 को अखबार में गुलाम मुस्तफा खान साहब की मृत्यु का समाचार पढ़ कर मुझे बहुत दुख हुआ ।अतीत की स्मृतियाँ ताजा हो गयीं। उनसे मुलाकात के क्षण जीवंत हो उठे । ऐसे भीतर तक सद्भावना से भरे हुए महापुरुष दुर्लभ ही होते हैं । आप रामपुर – सहसवान संगीत घराने के शीर्ष स्तंभ थे। शास्त्रीय संगीत की महान विभूति थे । शास्त्रीय संगीत की बारीकियों को आपने लता मंगेशकर सहित भारत की अनेकानेक संगीत जगत की प्रतिभाओं को सिखाया था । सभी आपके सम्मुख नतमस्तक थे ।
रामपुर से आपका जुड़ाव ,आत्मीयता , रामपुर आते – जाते रहना और उससे भी बढ़कर अपने सुपरिचितों को याद करते रहना – यह आपकी ऐसी विशेषता थी जो भुलाई नहीं जा सकती । आगामी #3_मार्च माह में आप की आयु 90 वर्ष हो जाती । आपकी पावन स्मृति को शत-शत प्रणाम ।
________________________
*लेखक : रवि प्रकाश*
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
Tag: संस्मरण
21 Views

Books from Ravi Prakash

You may also like:
आस्तीक भाग-चार
आस्तीक भाग-चार
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सुबह की आहटें
सुबह की आहटें
Ranjana Verma
Tumko pane ki hasrat hi to thi ,
Tumko pane ki hasrat hi to thi ,
Sakshi Tripathi
हम छि मिथिला के बासी,
हम छि मिथिला के बासी,
Ram Babu Mandal
“मैं क्यों कहूँ मेरी लेखनी तुम पढ़ो”
“मैं क्यों कहूँ मेरी लेखनी तुम पढ़ो”
DrLakshman Jha Parimal
कभी खुद से भी तो बात करो
कभी खुद से भी तो बात करो
Satish Srijan
भलाई में सबकी अपना भला है।
भलाई में सबकी अपना भला है।
Dr fauzia Naseem shad
हाय रे महंगाई
हाय रे महंगाई
Shekhar Chandra Mitra
खूबसूरत चेहरे
खूबसूरत चेहरे
Prem Farrukhabadi
सही नहीं है /
सही नहीं है /
ईश्वर दयाल गोस्वामी
वक़्त ने करवट क्या बदली...!
वक़्त ने करवट क्या बदली...!
Dr. Pratibha Mahi
होली गीत
होली गीत
umesh mehra
अब नहीं दिल धड़कता है उस तरह से
अब नहीं दिल धड़कता है उस तरह से
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
माँ शैलपुत्री
माँ शैलपुत्री
Vandana Namdev
दर्द है कि मिटता ही तो नही
दर्द है कि मिटता ही तो नही
Dr Rajiv
उम्मीदों का उगता सूरज बादलों में मौन खड़ा है |
उम्मीदों का उगता सूरज बादलों में मौन खड़ा है |
कवि दीपक बवेजा
■ विकृत परिदृश्य...
■ विकृत परिदृश्य...
*Author प्रणय प्रभात*
✍️जब रिक्त हथेलियाँ...
✍️जब रिक्त हथेलियाँ...
'अशांत' शेखर
💐प्रेम कौतुक-199💐
💐प्रेम कौतुक-199💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
एक इंतज़ार दीजिए नई गज़ल विनीत सिंह शायर के कलम से
एक इंतज़ार दीजिए नई गज़ल विनीत सिंह शायर के कलम...
Vinit kumar
आनंद में सरगम..
आनंद में सरगम..
Vijay kumar Pandey
हर आईना मुझे ही दिखाता है
हर आईना मुझे ही दिखाता है
VINOD KUMAR CHAUHAN
लालच
लालच
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
हासिल न कर सको
हासिल न कर सको
सिद्धार्थ गोरखपुरी
*अब साँठगाँठ से खाते हैं 【व्यंग्य-गीतिका】*
*अब साँठगाँठ से खाते हैं 【व्यंग्य-गीतिका】*
Ravi Prakash
कहां से दुआओं में असर आए।
कहां से दुआओं में असर आए।
Taj Mohammad
खूबसूरत बहुत हैं ये रंगीन दुनिया
खूबसूरत बहुत हैं ये रंगीन दुनिया
D.k Math { ਧਨੇਸ਼ }
पहनते है चरण पादुकाएं ।
पहनते है चरण पादुकाएं ।
Buddha Prakash
कब तक में छुपाऊंगा तूफान मोहब्बत का
कब तक में छुपाऊंगा तूफान मोहब्बत का
Irshad Aatif
सत्य विचार (पंचचामर छंद)
सत्य विचार (पंचचामर छंद)
Rambali Mishra
Loading...