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28 Jan 2023 · 1 min read

पगार

अपने ईमान से दगा
भूल से भी करता नहीं।
सौपे काम करने से
कभी भी डरता नहीं।

जितनी पगार मुझे
मिलती है खजाने से।
उससे ज्यादा की दरकार
कभी करता नहीं।

बहुत ही थोड़ी हैं मेरी,
जरूरतें और ख्वाहिशें।
इसलिए ऊपरी कमाई से
जेब कभी भरता नहीं।

सतीश सृजन लखनऊ.

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 34 Views
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