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11 Aug 2021 · 1 min read

पंचमहाभूत के सागर का मंथन

पंचमहाभूत के सागर में, रत्न कीमती रहते हैं
होता रहता है सागर मंथन, रत्न निकलते रहते हैं
सकारात्मक देव, नकारात्मक दानव ज्ञान अरई से मथते रहते हैं
अमृत निकलने से पहले,बिष भी निकलते रहते हैं
आत्मा रूपी महादेव, बिष को कंठ में धारण करते हैं
रत्न निकलते जाते हैं,मति अनुसार मिल जाते हैं
वासनाओं की चाहत में दानव, देवों से भिड़ जाते हैं
आत्मा रूपी परमात्मा बिष्णु,बारुणी अमृत यथायोग्य दे देते हैं
पंचमहाभूत की सृष्टि में,देव दनुज दोनों रहते हैं
ज्ञान और कर्मेंद्रियों में,प़भाव ये अपने रखते हैं
विवेक रूपी मक्खन से, नियंत्रित होते रहते हैं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 2 Comments · 307 Views

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