न दिखावा खातिर

न दिखावा खातिर
न गुमान खातिर।
जिन्दगी जीता हूँ
अपने ईमान खातिर।
होड़ की दौड़ में
नहीं फंसता सृजन।
हवस बना देती है,
अच्छे इंसान को शातिर।
सतीश सृजन
न दिखावा खातिर
न गुमान खातिर।
जिन्दगी जीता हूँ
अपने ईमान खातिर।
होड़ की दौड़ में
नहीं फंसता सृजन।
हवस बना देती है,
अच्छे इंसान को शातिर।
सतीश सृजन