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2 Mar 2022 · 1 min read

“नेताओं के झूठे वादें”

तुम चाहे जितने झूठे वादें कर लो,
हम रुख़ हवा की समझते हैं।
फिर भी अमूल्य वोट देकर अपना,
फ़र्ज़ अदाईं करते है।

चाहे तुम कुछ करो, ना करो,
देशहित में या जनहित में।
हम अपना कर्तव्य मानकर,
तुम्हें सांसद, विधायक बनाते है।

ख़ूब गुमराह करते हो जन को,
बहुरूपिया तक बन जाते हो।
हक खाकर भी जनसमूह की,
तुम जनसेवक कहलाते हो ?

शपथ लेते हो जनसेवा की,
विपरित, घोटाले करते हो।
अमूल्य ओट हमारा लेकर,
हम्हीं को नीतियों में ढा़लते हो।

भोली-भाली जनता को,
तुम सियासती, मूर्ख समझते हो?
ईमान-धर्म का नाता तोड़,
निज जनम कलंकित करते हो।

खूब लूटो खाओ देश को तुम,
धर्मशाला जिसे समझते हो,
लानत है ऐसी देशभक्ति पर,
क्यों न चुल्लू भर पानी में डुब मरते हो।।

दिला गए पुरखों ने आजादी,
तुम्हें तनिक शर्म नहीं आनी है।
क्यों लूटेगा कोई देश की संपदा ?
किसी के बाप की खानदानी है!

कितने कुर्बानियों से हमने,
आजादी को पाई है?
अफगानिस्तान,सीरिया,युक्रेन पर,
किसने तरस नहीं खाई है?

राकेश चौरसिया 01/03/22
9120639958

Language: Hindi
1 Like · 610 Views
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