*नेताओं की धुआँधार भाषणबाजी (हास्य व्यंग्य)*

नेताओं की धुआँधार भाषणबाजी (हास्य व्यंग्य)
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मेरा ध्यान उन नेताओं की ओर जाता है जिन बेचारों को एक महीने तक लगातार रोजाना दस-दस बड़ी जनसभाओं में भाषण देना पड़ता है । इसे हम केवल भाषण देना नहीं कह सकते । कहना चाहिए कि गला फाड़ना पड़ता है । अगर आवाज बैठ जाए तो इसमें आश्चर्य की बात कुछ भी नहीं है।
पता नहीं जनता का ध्यान नेताओं के इस कष्ट की ओर जाता है अथवा वह इस ओर ध्यान नहीं देते । चुनाव में यह बात तो सभी जानते हैं कि जो नेता जितना जोरदार भाषण देता है ,वह उतना ही अच्छा बोलने वाला माना जाता है । धाँसू नेता की पहचान ही यही है कि वह सभा-स्थल पर इतना गला फाड़े कि आसमान फट जाए । अगर कोई नेता शांति से अपनी बात कह कर चला जाए तब यह माना जाता है कि यह अच्छा बोलने वाला नहीं है ।
जिन नेताओं को भाषण देने के लिए छोटी-मोटी सभाओं में माइक की आवश्यकता नहीं पड़ती है वही अच्छे भाषणकर्ता माने जाते हैं । चुनाव में जनता के बीच जोश भरने का काम नेताओं के जिम्में रहता है । इन सब कार्यों से नेता का गला बैठता है ,आवाज फटने लगती है , बोलने में परिश्रम ज्यादा करना पड़ता है। अधिक कहो , तब जाकर थोड़ी-सी बात जनता तक पहुंँच पाती है । बेचारे अपनी बात कहने में थक जाते हैं लेकिन सबका अपना-अपना काम होता है । नेता का काम ही भाषण देना है । वह भाषण नहीं देगा तो फिर नेतागिरी का क्या होगा ? बिना भाषण सुने जनता वोट नहीं देती और भाषण जब तक आसमान को गुंजायमान कर देने वाला नहीं हो तब तक वह भाषण प्रभावशाली नहीं कहलाता।
इसलिए नेतागण चुनावों के समय अपना गला चौपट कर देते हैं । गले के साथ-साथ उनका चेहरा ,आँखें और मस्तिष्क सभी कुछ तमतमाया हुआ रहता है । पता नहीं लोकतंत्र के शुभचिंतकों को इतने लंबे समय तक नेताओं की भाषणबाजी के कारण उनके स्वास्थ्य के प्रति चिंता होती है कि नहीं ? लेकिन अत्यधिक समय तक और अत्यधिक जोरदार भाषणबाजी लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है ।
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लेखक: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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