नाम दोहराएंगे
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पन्नों को पलट कर क्या जान पाओगे
अपने भीतर देखो वही भाव पाओगे
मेरे स्नेह का साकार रूप तुम हो
इसका प्रति उत्तर कैसे दे पाओगे
चाहो तुम कुछ भी उससे क्या होता
अपनेपन के एहसास को हमेशा करीब पाओगे
शरीर साथ ना दे सका तो क्या
अपनी आंखों को जब भी बंद करोगे
मुझे अपने सामने ही पाओगे
बंधन स्नेह का क्या होता
जब भी सोचोगे मेरा ही नाम दोहराओगे।