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22 Dec 2022 · 1 min read

नवगीत

नवगीत –१

बन गए हैं सभी विवादी
^^^^^^^^^^^^^^^

जीवन का अवलम्बन बन कर
बन गए हैं सभी विवादी ।।

द्वार बंद हैं सब नीड़ों के
कराहती रहती साँसे
कई दिनों से चोंच बंद है
सभी उलट गये पासे

मन का पंछी माँग रहा है
अब पिंजरे से आजादी ।।

आंतकी साये में जीते
भ्रमित हुए काटते चक्कर
वापस लौटी लहरें आ कर
थक गई है खा कर टक्कर

पैरो से सभी गति छीन कर
सारे सुर बने अनुवादी ।।

कर्ण बधिर आँख हुई अंधी
जिह्वा भी हो गयी काली
चलती चलती थमी जिंदगी
रौनक तक हो गयी ठाली

सरगम- सरगम ढलती कविता
सुर हो गए नूतन व्याधि ।।

सुशीला जोशी, विद्योत्मा
मुजफ्फरनगर उप्र

Language: Hindi
63 Views
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