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20 May 2024 · 1 min read

नवगीत : मौन

नवगीत…
मौन

चुप घड़ी चुप बात हम करते रहे
साँस में हर साँस को भरते रहे ।

मुठ्ठियों में बांध करके मौन को
देर तक तकते रहे निज भौन को
हाथ में उँगली फँसा कर आपकी
हम दिवारें आस से भरती रहे ।।

चहकते कोने भवन के आज भी
पर ठिठक कर लौटती आवाज भी
एक बरसाती नदी सी आप ही
शुष्क तट को हम सजल करते रहे ।।

लपलपाती भीत मुझसे बोलती
नित नई सी गाँठ फिर से खोलती
मौन के पसरे मरुस्थल रेत में
याद के हम बीज को धरते रहे ।।

मौन की चादर लिपटी जा रही
जिंदगी उसमें सिमटती जा रही
बीहड़ों में जड़ जमाए शैल से
कतरा कतरा बस हो झरते रहे ।।

सुशीला जोशी, विद्योत्तमा
मुजफ्फरनगर उप्र

9719260777

Language: Hindi
84 Views
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