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24 May 2016 · 1 min read

नयी सुबह नयी भोर

समंदर के किनारे पर बैठे हुए निराश
सूरज को डूबते हुए देखकर सोचता हूँ
ज़िंदगी भी क्या रंग लाती है
सरसों सा पीला कभी, चटख लाल फिर
और अंधेरी काली रात फिर चढ़ आती है

चहचहाते हुए पंछियों का एक झुंड
अपने घौंसले की तरफ जाता हुआ
और दूर कोई मांझी अपनी नाव पर बैठा
मोहन सी बंसी बजाता हुआ

कल फिर उठेंगे ये पंछी और ये मांझी
फिर बढ़ निकलेंगे अपनी मंज़िल को और
खुशियाँ भरने को अपनो के जीवन में
ये मन लगा कर काम करेंगे पुरज़ोर

तो ऐ इंसान तू क्यूँ घबराता है
मेहनत ही तो वो रास्ता है
जो खुशियों को पता है

उठ बढ़ निकल फिर तू राह पर
ऐ हारे हुए उदास मन
तू चल पड़ अपनी खुशियों की और
कर लगन और मेहनत से किस्मत अपने काबू में
फिर एक नया दिन होगा, होगी फिर एक नयी भोर

–प्रतीक

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 842 Views
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