*धूप (कुंडलिया)*

*धूप (कुंडलिया)*
—————————————————–
खाते सर्दी में सुखद , गरम सुहानी धूप
खिल-खिल जाता है बदन ,चढ़-चढ़ जाता रूप
चढ़-चढ़ जाता रूप ,स्वर्ग-सुविधा ज्यों मिलती
धन्य – धन्य हैं भाग्य ,धूप जिनके घर खिलती
कहते रवि कविराय , अभागे आग जलाते
भाग्यवान हैं मस्त , धूप फोकट में खाते
—————————————————–
*रचयिता : रवि प्रकाश*
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451